शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

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*दादू साहिब कसै सेवक खरा, सेवक को सुख होइ ।*
*साहिब करै सो सब भला, बुरा न कहिये कोइ ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---ईश्वर
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कांचीपुरी के दामोदर नाम भक्त अति दरिद्री थे । भीख मांगकर काम चलाते थे और अतिथियों को सत्कार भी करते थे । एक दिन स्वयं भगवान बूढे ब्राह्मण के रूप में उनके अतिथि हुये । घर पर अन्न का दाणा नहीं । दामोदर की पत्नी ने अपने सिर के केश काटकर, उसकी डोरी बना करके पति के द्वारा बाजार में बिकवा कर अन्न मंगावाया । भोजन बनाकर अतिथि को खिलाया, इससे प्रसन्न होकर प्रभु ने उसे धन सम्पन्न कर दिया और स्त्री के केश भी पूर्ववत् ही हो गये थे । इससे सूचित होता है कि कभी कभी अतिथि रूप में भगवान मिल जाते हैं ।
अतिथि रूप में भी कभी, मिल जाते भगवान ।
दामोदर अति रंक को, बना गये धनवान ॥९९॥

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