शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

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*दादू विरह प्रेम की लहर में यह मन पंगुल होइ ।*
*राम नाम में गलि गया, बूझे बिरला कोइ ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---भाव
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श्रीचैतन्य महाप्रभु के शरीर के भीतर के अंग कभी शिथिल हो जाते थे और कभी संकुचित हो जाते थे इत्यादिक भाव उनके शरीर पर प्राय: दिखाई दिया करते थे । इससे ज्ञात होता है कि - भावावेश में भक्त के शरीर पर विशेष भाव दिखाई देते हैं ।
भावादेश में भक्त तन, विविध भाव दरशाय ।
चैतन्यप्रभु तन बहुत ही, होते संत सुनाय ॥६॥

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