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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१३. मन कौ अंग ~ ४१/४४*
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जिस अस्थल कूं जाइ मन, तित बोलै भजि रांम ।
कहि जगजीवन वही घर, तीन लोक सब ठांम ॥४१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जहाँ भी मन जाता है वहाँ ही वह राम बोले भजन करे । वह ही सच्चा घर है चाहे तीनों लोक में सब स्थान पर देख ले ।
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मन बैरागी करि रहै, घर मांही घर जांणि ।
जगजीवन रस ऊपजै, एही तत्त पिछांणि ॥४२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मन में जब वैराग्य होतो घर में ही परमात्मा का घर हो जाता है । और आनंद रस की अनुभूति होती है यह ही तत्त्व रुप में जानें ।
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मन बैरागी करि रहै, परिहरि आंन उपाइ ।
घर बन मांहैं एक सौ, जगजीवन ल्यौ लाइ ॥४३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मन वैरागी करके भी हम संसारिक यत्न करने में लगे रहते हैं संत कहते हैं कि घर व वन सर्वत्र एक समान है ऐसा जानकर प्रभु भजन कीजिये ।
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मन बैरागी करि रहै, भावै तहां भजि रांम ।
जगजीवन सुख रूप है, समझ्या कूं सब ठांम ॥४४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मन वैरागी होने पर चाहे जहाँ बैठकर भजन करें सर्वत्र आनंदरस है । वह सर्वत्र मिल सकता है ।
(क्रमशः)

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