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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ४३/४५)
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*प्रजा की रक्षा नृप कूं होई,*
*वेद शास्त्र भाखै सब सोई ।*
*सब ही संत जु करैं बखाना,*
*भाखै स्मृति अष्ट दस पुरानां ॥४३॥*
प्रजा की रक्षा राजा से रहती है, वेद शास्त्र की रक्षा प्रवचन करने वाले विद्घान से रहती है, यह बात सभी संत, स्मृति अठारह पुराण आदि कहते है ॥४३॥
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*परोपकार और भक्ति दोनों*
*बहुत भांति कीज्यो उपगार,*
*आप भक्ति जु सदा करार ।*
*ज्यावधरी नृप बोले बैन,*
*द्यौ दरसन, भर देखूं नैन ॥४४॥*
स्वामीजी ने कहा- राजन बहुत प्रकार से परोपकार करते हुये स्वयं भी भगवद् भक्ति में सदा दृढ रहना । तब राजा ज्यावधरी ने कहा कि आप हमें मुक्त भाव से सदा दर्शन दें जिससे नैन भर देखें ॥४४॥
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*सहर बलेलि सुकीजै गवनूं,*
*पावन हो सकल जो भवनू ।*
*करो कृपा इहां अब रहिये,*
*सेवा करि लाहौ पुनि लहिये ॥४५॥*
फिर राजा ज्यावधरी ने कहा- अब बलेलि नगर में चलकर सब को दर्शन देने की कृपा करें । जिससे सब के भवन पवित्र हो जाये और मैं भी अपने नेत्रों से इच्छा भरकर दर्शन कर सकूं । मेरी तो प्रार्थना है अब आप कृपा करके यहां ही रहिये जिससे हम लोग सेवा करके परम लाभ प्राप्त कर सके ॥४५॥
(क्रमशः)

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