शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

*१२. चितावणी कौ अंग ~ ८५/८७*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*१२. चितावणी कौ अंग ~ ८५/८७*
.
ग्राहि ग्रह्यौ ते म्रितक करि, अब क्यूं छूटै अंध ।
कहि जगजीवन हरि भगत, रांम बिना सब धंध ॥८५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि ग्रहण करुं ऐसा सोचते जीव मृत्यु तक पहुंच जाता है । किंतु हरि भक्त यह कहते है कि प्रभु के बिना सब व्यर्थ है ।
.
रांम नांम सुख आंन दुख, कोइ जन जांनै तास ।
चित भ्रम छलै अनेक नर, सु कहि जगजीवनदास ॥८६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम ही सुख है शेष सब दुख है लोग ऐसे ही सब को भ्रम में डालते रहते हैं सत्य कोइ विरला जन ही जानता है ।
.
कहा हंसि दुनियां देखि मन, रांम न ह्रिदै विलास ।
ता थैं रोवै तो भला, सु कहि जगजीवनदास ॥८७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस दुनियां में लोग जिनके मन में प्रभु भक्ति नहीं है जाने क्या सोचकर प्रसन्न होते हैं इससे तो वे अपने कृत कृत्यों पर रोये तो ही कल्याणकारी है ।
इति चितावणी कौ अंग संपूर्ण ॥१२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें