मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

*ज्ञान-पथ और विचार-पथ*

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*दादू नाम निमित रामहि भजै,*
*भक्ति निमित भजि सोइ ।*
*सेवा निमित सांई भजै, सदा सजीवन होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*ज्ञान-पथ और विचार-पथ । भक्तियोग और ब्रह्मज्ञान*
श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में बैठे हुए हैं । रात के आठ बजे होंगे । आज पूस की शुक्ला पंचमी है; बुधवार, २ जनवरी, १८८४ । कमरे में राखाल और मणि हैं । श्रीरामकृष्ण के साथ रहने का मणि का आज इक्कीसवाँ दिन है ।
श्रीरामकृष्ण ने मणि को तर्क-विचार करने से मना किया है ।
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श्रीरामकृष्ण – राखाल से – ज्यादा तर्क-विचार करना अच्छा नहीं । पहले ईश्वर है, फिर संसार । उन्हें पा लेने पर उनके संसार के सम्बन्ध में भी ज्ञान हो जाता है ।
(मनि और राखाल से) “यदु मल्लिक से बातचीत करने पर उसके कितने मकान हैं, कितने बगीचे हैं, कम्पनी के कागजात कितने हैं – यह सब समझ में आ जाता है ।
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“इसीलिए तो ऋषियों ने वाल्मीकि को ‘मरा-मरा’ जपने के लिए उपदेश दिया था । इसका एक विशेष अर्थ है । ‘म’ का अर्थ है ईश्वर और ‘रा’ का अर्थ संसार, - पहले ईश्वर, फिर संसार ।
“कृष्णकिशोर ने कहा था, ‘मरा-मरा शुद्ध मन्त्र है; क्योंकि वह ऋषि का दिया हुआ है । ‘म’ अर्थात् ईश्वर और ‘रा’ अर्थात् संसार ।
“इसीलिए वाल्मीकि की तरह पहले सब कुछ छोड़कर निर्जन में व्याकुल हो रो-रोकर ईश्वर को पुकारना चाहिए । पहले आवश्यक है ईश्वर-दर्शन । उसके बाद है तर्क-विचार – शास्त्र और संसार के सम्बन्ध में ।
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(मणि के प्रति) “इसीलिए तुमसे कहता हूँ, अब और अधिक तर्क-विचार न करना । यही बात कहने के लिए मैं झाऊतल्ले से उठकर आया हूँ । ज्यादा तर्कविचार करने पर अन्त में हानि होती है । अन्त में हाजरा की तरह हो जाओगे । मैं रात में अकेला रास्ते पर रो-रोकर टहलता और कहता था, ‘माँ, मेरी विचार-बुद्धि पर वज्रप्रहार आकर दो ।’
“कहो, अब तो तर्क-विचार न करोगे ?”
मणि – जी नहीं ।
(क्रमशः)

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