शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” २८/३०)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” २८/३०)
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*भाव भक्ति रहो रस माता,*
*यूं ही देह सिध करे विधाता ।*
*प्रेमा भक्ति करो मन लाई,*
*ईंही देह मुक्ति ह्वैं भाई ॥३१॥*
तुम भी भाव भक्ति रूप रस में मस्त रहो, इस प्रकार साधन करने से देह रहते हुये भी परमात्मा सिद्घावस्था दे देते हैं । तुम भी मन लगा कर प्रभु की प्रेमाभक्ति करो, इस देह में ही मुक्त हो जावोगे ॥३१॥
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*आपन करौ अरु और करावों,*
*इहि बिधि हरि की भक्ति बढ़ावो ।*
*कथा कीर्तन सुमिरन सेवा,*
*उरु मंहि पूजो निर्मल देवा ॥३२॥*
स्वयं हरि की भक्ति करो और दूसरों से करावो, इस प्रकार हरि की भक्ति बढ़ाओ । हरि कथा, हरिनाम संकीर्तन, स्मरण सेवा करते हुये हृदयस्थ निर्मल देव साक्षी रूप की पूजा करो ॥३२॥
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*जावधरी और बसंत को राजा बना दिया*
*स्वामी कही सु दुहुवनि मांनी,*
*दासातन की रूचि बखानी ।*
*बसंत राइ ज्याव धरी चिन्हा,*
*स्वामी तिनको टीका दीन्हां ॥३३॥*
स्वामी दादूजी ने उक्त उपदेश दिया । तब उन दोनों राजकुमारों ने उसे मान लिया और दास भाव से प्रभु में प्रीति रखते हुये हम राज करेंगे ऐसा कह दिया । बसंतराय और ज्यावधरी की स्थिति देखकर स्वामी दादू ने उन्हें टीका कर टीकायत राजा बना दिया ॥३३॥
(क्रमशः)

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