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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ पारिख का अंग २७ - २१/२३)*
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*प्राण जौहरी पारिखु, मन खोटा ले आवै ।*
*खोटा मन के माथे मारै, दादू दूर उड़ावै ॥२१॥*
यदि कोई जिज्ञासु अपने मन के दोषों को जानने के लिये मन के दोषों का निग्रह करने में चतुर गुरु के पास जावे तो वह सद्गुरु अपने मन से उसके दोषों का पहले जान कर(परीक्षा करके) शमदमादि साधनों द्वारा मन के दोषों का संशोधन करे । जो मन के दोषों को जानने में ही असमर्थ है वह गुरु शिष्य के मन के दोषों को कैसे दूर कर सकता है । अतः समर्थ गुरु के ही पास जाना चाहिये । जैसे रात्रि के अन्धकार को सूर्य का तेज ही नष्ट कर सकता है ऐसे ही मन के दोषों को भी समर्थ गुरु ही दूर कर सकता है । जैसे रत्न की परीक्षा करने वाला जौहरी ही खोटे अच्छे रत्नों की परीक्षा कर सकता है । दूसरा नहीं । यदि अपने मन को शुद्ध नहीं कराओगे तो दयालु परमात्मा उसको संसार में डाल देंगे ।
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*श्रवणां हैं, नैनां नहीं, तातैं खोटा खाहिं ।*
*ज्ञान विचार न उपजै, साच झूठ समझाहिं ॥२२॥*
संसारी लोग शास्त्रों के उपदेश को सुन कर भी विवेक विचार बिना संसार की आसक्ति को नष्ट किये बिना आत्मलाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं । किन्तु सत्य-असत्य का निर्णय किये बिना संसार में क्लेश ही पाते हैं । क्योंकि आपको ब्रह्म स्वरूप से जाने बिना भव बन्धन से मुक्त नहीं हो सकता । अतः आत्मज्ञान के लिये यत्न करना चहिये । विवेकचूडामणि में कहा है कि- जिसने श्रुतियों के बल से अपने आत्मा के स्वरूप को जान लिया वह भव बन्धन से मुक्त हो जाता है और वह जीता हुआ ही मुक्त है ।
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*॥ साच ॥*
*दादू साचा लीजिये, झूठा दीजे डार ।*
*साचा सन्मुख राखिये, झूठा नेह निवार ॥२३॥*
सत्य उपदेश को धारण करके असत्य मनोरथों को त्याग दो और सच्चिदानन्द परमात्मा का चिन्तन करते हुए विषयों के राग को समाप्त कर दो । क्योंकि विज्ञान का यही दृष्टफल है कि हमारे विषयों से निवृत्ति हो जय ।
लिखा है कि- विद्या का फल असत् से निवृत्त होना और अविद्या का उन विषयों में प्रवृत्त होना है । ये दोनों फल अज्ञानी पुरुषों की मृगतृष्णा आदि की प्रवृत्ति में जानने, न जानने वालो में देखे गये हैं । यदि मूढ की तरह विद्वान् भी असत् पदार्थों में प्रवृत्त होता है तो फिर विद्या का फल ही क्या हुआ ?
(क्रमशः)

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