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*दादू जिन यहु दिल मंदिर किया, दिल मंदिर में सोइ ।*
*दिल मांही दिलदार है, और न दूजा कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मोहमर्द*
*अरिल छप्पय-*
*ऋषि नारद वैकुण्ठ, गये हरि पास है ।*
*प्रश्न करा नहिं मोह, इसो कोई दास है ॥*
*मोहमरद भणि भूप, रूप राणी सिरै ।*
*ताके सुत की घरणि, वरणि वक्ता तिरे ॥*
*नारद से निर्वेद, विष्णु जी विधि कही ।*
*राघव भेद न भ्रांति, भक्त भगवत सही ॥९२॥*
एक समय देवर्षि नारद जी वैकुण्ठपुरी में हरि के पास गये और पूछा- जिसमें मोह नहीं हो ऐसा भी कोई भक्त है क्या? भगवान् ने कहा- राजा मोहमर्द और उसकी राणी रूपकुमारी भी मोह जीतने वालों में श्रेष्ठ हैं तथा मोहमर्द के पुत्र की पत्नी भी सास श्वशुर के समान ही है । जिसके मोह विजय की बात को वर्णन करके वक्ता जन भी संसार-सागर से पार हो जाते हैं । विष्णु जी ने नारद जी को राजा मोहमर्द आदि के वैराग्य की विधि भी सुनाई । मोहमर्द आदि में भेद भ्रांति नहीं थी । वे सभी भक्तों को निश्चय ही भगवत् रूप समझते थे ।
(क्रमशः)

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