🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*राम रसिक वांछै नहीं, परम पदारथ चार ।*
*अठसिधि नव निधि का करै, राता सिरजनहार ॥ *
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*दया-दान आदि और श्रीरामकृष्ण । श्रीचैतन्य देव का दान*
.
“सत्त्वगुण के पाने पर मनुष्य ईश्वर को पाता है । संसारी मनुष्यों के दानादि कर्म प्रायः सकाम ही होते हैं । यह अच्छा नहीं । निष्काम कर्म करना ही अच्छा है । परन्तु निष्काम भाव से करना है बड़ा कठिन ।
.
“ईश्वर से भेंट होने पर क्या उनसे यह प्रार्थना करोगे कि मैं कुछ तालाब खुदवाऊँगा ? या रास्ता, घाट, दवाखाना और अस्पताल बनवाऊंगा ? क्या उनसे कहोगे, हे ईश्वर, मुझे ऐसा वर दीजिये कि मैं यही सब करूँ ? उनका दर्शन होने पर ये सब वासनाएँ, एक ओर पड़ी रहती हैं ।
.
“परन्तु इसलिए क्या दया और दान के कर्म ही न करना चाहिए ?
“नहीं, यह बात नहीं । आँखों से आगे दुःख और विपत्ति देखकर धन के रहते सहायता आवश्यक करनी चाहिए । ऐसे समय ज्ञानी कहता है, ‘दे, इसे कुछ दे ।’ परन्तु भीतर ही भीतर ‘मैं क्या कर सकता हूँ – कर्ता ईश्वर ही हैं, अन्य सब अकर्ता हैं’ – ऐसा बोध उसे होता रहता है ।
.
“महापुरुषगण जीवों के दुःख से दुःखी होकर ईश्वर का मार्ग बतला जाते हैं । शंकराचार्य ने जीवों की शिक्षा के लिए ‘विद्या का अहं’ रखा था ।
“अन्नदान की अपेक्षा ज्ञानदान और भक्तिदान अधिक ऊँचा है । चैतन्यदेव ने इसीलिए चाण्डालों तक में भक्ति का वितरण किया था । देह का सुख और दुःख तो लगा ही है । यहाँ आम खाने के लिए आये हो, आम खा जाओ । आवश्यकता ज्ञान और भक्ति की है । ईश्वर ही वस्तु है, और सब अवस्तु ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें