🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*१३. मन कौ अंग ~ १३/१६*
.
समझाया समझै नहीं, साकत१ जैसा बैल ।
जगजीवन सो दूरि करि, जा का मन मंहि मेल ॥१३॥
(१. साकत=अडियल)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो समझाने से भी नहीं समझते, वे जन अड़ियल बैल की भांति हैं, उनसे दूरि बनकर रखें जिनसे मन नहीं मिलता है ।
.
आंधा कै आंख्यां२ नहीं, बहिरा कै नहीं कांन ।
सूझै बूझै कछु नहीं, जगजीवन गुर ग्यांन ॥१४॥
{२. आंख्यां=दृष्टि(=नेत्र) ।}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो स्वार्थ के सिवा कुछ नहीं देखना चाहता वह अंध सदृश है जो भगवद् वाद नहीं सुनता वह बहरे के समान है । न तो उन्हें सम्यक दिखता है न वे गुरु ज्ञान में रुचि रखते हैं ।
.
मन बस तन बसि पवन बसि, सकल सोंज सिंगार ।
कहि जगजीवन रांम बिन, जब लग मनसा मांही मार ॥१५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिनका मन वश में, दैहिक इन्द्रियाँ वश में हैं, श्वास वश में हैं, वे सब कुछ कर लें । संत कहते हैं कि स्मरण के बिना ये सब मन मारकर दिखावा करने जैसा है ।
.
कित कित३ रोकै एक मन, नैन आइ जल४ पूरि ।
जगजीवन संसै सबल, पांव पसारै दूरि ॥१६॥
(३. कित कित=कहाँ कहाँ) (४. जल=आंसू)
संतजगजीवन जी कहते है कि मन को कहाँ तक रोकोगे । ऐसा करोगे तो इच्छा अपूर्ति का भाव आने से रो दोगे । हमारे मन में श्रद्धा का स्थान यदि संशय ने लिया है तो मात्र दूर तक की सोचने से हासिल कुछ भी नहीं होगा ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें