🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू आनन्द आत्मा, अविनाशी के साथ ।*
*प्राणनाथ हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
=================
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*६. गोरक्षनाथ*
*इन्द ज्यों जिन्द१ कि जीवनि गोरख,*
*ज्ञान घटा वरष्यो घट धारी ।*
*भूप निन्याणव कोटि२ किये सिध,*
*आतम और अनंतहु तारी ॥*
*विचरै तिहूँ लोक नहीं कहुँ रोक हो,*
*माया कहा बपुरी पचहारी ।*
*स्वाद न स्पर्श यूं रह्यो अपरस,*
*राघो कहै मनसा मन जारी ॥८२॥
मत्स्येन्द्रनाथ जी के शिष्य यति वर गोरक्षनाथ जी इन्द्र के समान भूतों१(प्राणियों) के जीवन रूप हैं । जैसे इन्द्र वर्षा द्वारा प्राणियों का पालन करते हैं वैसे ही शरीरधारी गोरक्षनाथ जी अपनी ज्ञान-घटा के द्वारा आनन्द जल की वर्षा करते हैं ।
.
निन्याणवे प्रकार२ के राजाओं को आपने उपदेश द्वारा साधन करा कर सिद्ध बनाया था और भी अनन्त जीवात्माओं का उद्धार किया था ।
.
आप तीनों लोकों में घूमते थे, कहीं भी जाने की इन्हें रुकावट नहीं थी । माया तो बेचारी इनके आगे क्या चीज है ? वह इनको अपने अधीन करने के लिये पच पच कर हार गई । किन्तु इनको अपने वश में नहीं कर सकी ।
.
आपने विषय स्वाद का स्पर्श नहीं किया, उससे सदा अलग ही रहे और मन तथा मनोरथों को अच्छी प्रकार जीतकर निर्द्वन्द्व स्थिति को प्राप्त हुए थे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें