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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” १३/१५)
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*श्री गुरु दादू दीनदयाल, मुख करि महिमां क्या कहूं ।*
*है मम बुद्घि जु तुच्छ, तुम गुन उदार गंभीर बहू ॥१३॥*
हे सतगुरु दीनों पर दया करने वाले दादूजी मैं आपकी महिमा मुख से कैसे कह सकता हूं क्योंकि मेरी बुद्घि तो बहुत तुच्छ छोटी है ओर आपके गुण बहुत विस्तृत उदार एवं गंभीर गहरे हैं । अत: आपकी महिमा वर्णन में असमर्थ हूं ॥१३॥
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*अस्तुति करि राजा चल्यौ, बन महि वास करि अबैं ।*
*आग्या देहु दयाल, करि सुमरण हरि उद्घरै ॥१४॥*
पूर्व जन्म की कथा सुनकर धरा जयमल और पदमसिंघ ने दादूजी की स्तुति की और कहा वन में निवास करके हरि का स्मरण करते हुये हम अपना उद्घार करें । हे दादू दयालजी आप हमें ऐसी आज्ञा प्रदान करें ॥१४॥
*राजा दादूजी से आज्ञा मांगना*
*स्वामी अबै सु आज्ञा दीजै,*
*बनों बास में सुमरण कीजै ।*
*ज्ञानदास अरु माणिक दासू,*
*एकादस वर्ष कौल प्रकासू ॥१५॥*
स्वामीजी महाराज ! अब हमको आज्ञा दीजिये कि हम बन में निवास करते हुये निरंतर निरंजन राम का ही स्मरण करे । ज्ञानदास माणिक दास जी ने ११ वर्ष की सीमा बताई थी ॥१५॥
(क्रमशः)

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