गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

सजीवन का अंग २६ - ३३/३६

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ सजीवन का अंग २६ - ३३/३६)*
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*जीवित पाया प्रेम रस, जीवित पिया अघाइ ।*
*जीवित पाया स्वाद सुख, दादू रहे समाइ ॥३३॥*
महात्मा लोग जीते हुए ही भगवान् के प्रेम रस को प्राप्त करके उस रस को पीते हुए नित्य तृप्त रहते हैं । जीते हुए ही ब्रह्मानन्द रस का आस्वादन करके सुखरूप ब्रह्म में नित्य ही स्थित रहते हैं । वेदान्तसंदर्भ में जीवन्मुक्त का अनुभव बतलाते हैं कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है । अतः यह सारा जगत् ही आनन्दस्वरूप है और मैं भी परम आनन्द स्वरूप हूँ । ऐसा जिसका अनुभव है वह जीवन्मुक्त होता है ।
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*जीवित भागे भ्रम सब, छूटे कर्म अनेक ।*
*जीवित मुक्त सद्गति भये, दादू दर्शन एक ॥३४॥*
साधक जीते हुए ही ब्रह्म साक्षात्कार करके अपनी कर्म ग्रन्थि को नष्ट कर देता हैं । भ्रम की निवृत्ति भी जीते हुए ही होती है और जीते हुए ही मुक्त हो कर सद्गति को प्राप्त होता है ।
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*जीवित मेला ना भया, जीवित परस न होइ ।*
*जीवित जगपति ना मिले, दादू बूड़े सोइ ॥३५॥*
जिन्होंने जीवित अवस्था में गुरु प्राप्त नहीं किया और न ब्रह्म का साक्षात्कार ही किया, वे इस संसार समुद्र में बार-बार डूबते रहते हैं । सुभाषित में कहा है कि- सकल परिच्छेद से शून्य वाणी का अविषय जो परमात्मा है, उसका जिसने जीवन में अनुभव नहीं किया है । उस के विवेक का नाश हो जाने से उस के मन को महामोह ने जडीभूत बना रखा है । इसी से वह अनन्त तापों को भोगता है ।
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*जीवित दुस्तर ना तिरे, जीवित न लंघे पार ।*
*जीवित निर्भय ना भये, दादू ते संसार ॥३६॥*
जिन्होंने जीते जी दुस्तर आशा नदी को पार नहीं किया तथा जिनका जीवन निर्भय नहीं बना, वे इस संसार में बार-बार दुःख पाते हैं । जन्मते-मरते रहते हैं । लिखा है कि- यह आशा नाम की नदी है वह नाना मनोरथरुपी जल से भरी हैं और उसमें तृष्णा की बड़ी-बड़ी तरंगे चल रही है । जिसमें राग रूपी ग्राह और वितर्क रूपी पक्षी घूम रहे हैं । जो धैर्य रूपी किनारों को नष्ट करती है । मोहरूपी भ्रमर के कारण गहन मालुम पडती है । बड़ी बड़ी चिन्तायें ही उसके किनारे हैं । जिन्होंने पार नहीं की, वे ही उसमें डूबते रहते हैं ।
(क्रमशः)

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