गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” ७/९)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ७/९)
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*दादूजी के ध्यान से परम पद मिले*
*जो दादू ध्यावै, परमपद पावै,*
*हरि कूं भावै, जन्म न धरावै ।*
*बहूरि न आवै तिमिर नसावै,*
*ज्ञान गहावै, राम मिलावै ॥*
*तोय धुवावै(तेजपुंज) पावक झलकावे*
*सीत नवासै, पवन श्रखावै ॥*
*को रंग न रावै, व्यौम बढावै,*
*पार न पावै कहां लो गावै ।*
*ज्यूं ध्रुव प्रहलादू, यूं सतगुरु दादू*
*आदि अनादू प्रसिद्घ साधु ।*
*तज्या बिवादू, नहीं विषादू,*
*डरे जमादू, रांम उमादू ॥*
*तजि मर जादू सुधा प्रसादू ॥७॥*
जो व्यक्ति दादूजी का ध्यान करता है वह परमपद ब्रह्म निरंजन राम को प्राप्त करता है, वह प्रभु का प्रिय होता है एवं जन्म मरण से रहित हो जाता है निरंजन राम का ज्ञान प्राप्त कर राम में ही समाहित हो जाता है मिल जाता है । तेज पुंज का प्रकाश प्राप्त कर दिव्य ज्योति प्राप्त करता है सीत नष्ट होता हैं एवं आयु प्राप्त करता है उसकी दृष्टि में न कोई गरीब है न राजा है सब प्राणी समान है उसका विस्तार व्यापक हो जाता है, संत दादूजी की महिमा का अन्त नहीं है उनका कहां तक गुण गान करे । जिस प्रकार ध्रुव एवं प्रहलाद भक्त शिरोमणि हैं उसी प्रकार दादूजी आदि अंत से रहित अनादि है । प्रसिद्घ संत हैं । वे सब विवादों से परे हैं । निर्विवाद हैं उन्हें कोई विषाद कष्ट नहीं है, यमदूत उनसे डरते हैं, रामको प्राप्त करने वाले एवं सांसारिक मर्यादाओं से रहित है । उनका प्रसाद प्रसन्नता अमृत है ॥७॥
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लोक वेद मरजाद तजि, कीयौ ब्रह्म महिं वास ।
कर्म काट तैं रहित हैं, अहनिसि सुधा विलास ॥८॥
लोक संसारिक व्यवहार एवं वेदों के कर्मकांड आदि को त्याग कर जिन्होंने केवल निरंजन ब्रह्म में ही वास किया है वे कर्म बन्धनों से रहित होकर सदा सर्वदा ब्रह्मानंद रूपी अमृत में आनंद क्रीडा करते हैं ॥८॥
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*सुधा विलासी, हरि के वासी,*
*रहे उदासी सुख में वासी ।*
*काटी फांसी, पंच विनासी,*
*कीया नासी, तोरी जम पासी ॥*
*दृढ विसवासी केवल उपासी,*
*सुख की रासी, करम गिरासी ।*
*हरि तहां जासी, ब्रह्म विलासी,*
*पीवत न अघासी, हरि हरि गासी ॥*
*सुन्दर केसं निरगुण भैसं,*
*दे उपदेसं टारे लव लेसं ।*
*ज्यूं संकर सेसं, गये ब्रह्म देसं,*
*गवन हमेसं, ताहि आदेसं ॥९॥*
संत दादूजी ब्रह्मानंद रूप अमृत में विलास करने वाले, निरंजन हरि में निवास करने वाले हैं । उन्होंने यम की फांसी काट दी एवं पंच पंचेन्द्रियों व पंच महाभूतों के बन्धन को नष्ट करने वाले, अज्ञान का नाश करने वाले, यम के पास को तोडने वाले हैं । निरंजन राम में दृढ विश्‍वास रखने वाले, कैवल्य ज्ञान की उपासना करने वाले, आनंद स्वरुप, कर्मबन्धन नाशक, निरंजन हरि के यहां रहने वाले, ब्रह्म में विलास आनन्द करने वाले, निरंजन रामरस का सदा पान करते तृप्त नहीं होने वाले, निरन्तर हरि का गान करने वाले, सुंदर स्वरूप वाले, निष्कलंक निरगुण भेष धारण करने वाले, अज्ञानियों को उपदेश देने वाले, सूक्ष्म से सूक्षम संशयों के नाशक, जिस प्रकार शंकर शेषनाग आदि ब्रह्म देश में पहुंचें उसी प्रकार सदा ब्रह्मदेश के वासी श्री दादूजी हैं उन्हीं का आदेश शिरोधार्य है उन्हें पुन: पुन: प्रणाम है ॥९॥
(क्रमशः)

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