गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

*काली और ब्रह्म दोनों अभेद हैं*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू बिगसि बिगसि दर्शन करै,*
*पुलकि पुलकि रस पान ।*
*मगन गलित माता रहै,*
*अरस परस मिलि प्राण ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
यह बात सुनते ही श्रीरामकृष्ण समाधिस्थ हो गए । चित्रवत् स्थिर बैठे हुए हैं । साधु और भक्तगण आश्चर्यचकित होकर श्रीरामकृष्ण की यह समाधि-अवस्था देख रहे हैं । केदार साधु से कह रहे हैं, “यह देखिए, इसे समाधि कहते हैं ।” साधु ने ग्रन्थों में ही समाधि की बात पढ़ी थी । समाधि कैसे होती है, यह उन्होंने कभी नहीं देखा था ।
श्रीरामकृष्ण धीरे धीरे अपनी प्राकृत अवस्था में आ रहे हैं । अभी जगन्माता के साथ वार्तालाप कर रहे हैं । कहते हैं – “माँ, अच्छा हो जाऊँ, बेहोश न कर देना । साधु के साथ सच्चिदानन्द की बातें करूँगा । सच्चिदानन्द की बातें करते हुए आनन्द मनाऊँगा ।”
.
साधु निर्वाक् होकर देख रहे हैं और ये सब बातें सुन रहे हैं । अब श्रीरामकृष्ण साधु से बातचीत करने लगे । कहते हैं – अब तुम ‘सोऽहम् उड़ा दो । अब ‘हम और तुम’ लेकर विलास करें ।
जब तक ‘हम’ और ‘तुम’ यह भाव है, तब तक माँ भी हैं । आओ, उन्हें लेकर आनन्द किया जाय । श्रीरामकृष्ण के कथन का शायद यही मर्म है ।
कुछ देर इस तरह बातचीत हो जाने के बाद श्रीरामकृष्ण पंचवटी में टहलने चले गए । राम, केदार, मास्टर आदि उनके साथ हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण(सहास्य) – साधु को तुमने कैसा देखा ।
केदार – उसका शुष्क ज्ञान है । अभी उसने हण्डी चढ़ायी भर है – अभी चावल नहीं चढ़ाए गए ।
श्रीरामकृष्ण – हाँ, यह ठीक है, परन्तु है त्यागी । जिसने संसार को त्याग दिया है वह बहुत-कुछ आगे बढ़ गया है ।
.
“साधु अभी प्रवर्तक है । उन्हें अगर कोई प्राप्त न कर सका, तो उसका कुछ भी नहीं हुआ । जब उनके प्रेम में मस्त हुआ जाता है, तब और कुछ नहीं सुहाता । तब तो – ‘आदरणीय श्यामा माँ को बड़े यत्न से हृदय में धारण किए रहो । मन तू देख और मैं देखूँ, और कोई न देखने पाए ।’ 
केदार श्रीरामकृष्ण के भाव के अनुरूप एक गीत गाते हैं –
(भावार्थ) – “सखि, मन की बात कैसे कहूँ? कहने की मनाई है । दर्द को समझनेवाले के बिना प्राण कैसे बच सकेंगे ! जो मन का मीत होता है वह देखते ही पहचान में आ जाता है । वह विरला ही होता है ।.......”
.
श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में लौट आए हैं । चार बजे का समय है – कालीमन्दिर खुल गया । श्रीरामकृष्ण साधु को लेकर कालीमन्दिर जा रहे हैं । मणि भी साथ हैं ।
कालीमन्दिर में प्रवेश कर श्रीरामकृष्ण भक्तिपूर्वक माता को प्रणाम कर रहे हैं । साधु भी हाथ जोड़कर सिर झुका माता को बारम्बार प्रणाम कर रहे हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण – क्यों जी, दर्शन कैसे हुए ?
साधु(भक्तिभाव से) – काली प्रधान है ।
श्रीरामकृष्ण – काली और ब्रह्म दोनों अभेद हैं । क्यों जी ?
साधु – जब तक बहिर्मुख है तब तक काली को मानना होगा । जब तक बहिर्मुख हैं तब तक भले बुरे दोनों भाव हैं – तब तक एक प्रिय और दूसरा त्याज्य, यह भाव है ही ।
“देखिये न, नाम और रूप ये सब तो मिथ्या ही हैं, परन्तु जब तक मैं बहिर्मुख हूँ तब तक मुझे स्त्रियों को त्याज्य समझना चाहिए । और उपदेश के लिए ‘यह अच्छा है, यह बुरा है’ यह भाव रखना चाहिए – नहीं तो भ्रष्टाचार फैलेगा ।”
श्रीरामकृष्ण साधु के साथ बातचीत करते हुए कमरे में लौटे ।
श्रीरामकृष्ण – देखा, साधु ने कालीमंदिर में प्रणाम किया ।
मणि – जी हाँ ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें