शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

*मणि के प्रति उपदेश*

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*माया देखे मन खुशी, हिरदै होइ विकास ।*
*दादू यहु गति जीव की, अंत न पूगै आस ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ७४*
*मणि के प्रति उपदेश*
*(१) कामिनी-कांचन-त्याग*
श्रीरामकृष्ण दोपहर का भोजन कर चुके हैं । एक बजे का समय होगा । शनिवार, ५ जनवरी १८८४ ई. । मणि को श्रीरामकृष्ण स्वयं उन्हें पुकार रहे थे । मणि को श्रीरामकृष्ण के साथ रहते हुए आज २३ वाँ दिन है ।
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मणि भोजन करके नौबतखाने में थे, वहीँ से किसी को नाम लेकर पुकारते हुए सुना । बाहर आकर उन्होंने देखा कि घर के उत्तरवाले लम्बे बरामदे से श्रीरामकृष्ण स्वयं उन्हें पुकार रहे थे । मणि ने आकर उन्हें प्रणाम किया । दक्षिण के बरामदे में श्रीरामकृष्ण मणि से वार्तालाप कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण – तुम लोग किस तरह ध्यान करते हो? – मैं तो बेल के नीचे कितने ही रूप साफ साफ देखता था । एक दिन देखा, सामने रूपये, दुशाला, एक थाल, सन्देश और दो औरतें ! तब मैंने मन से पूछा, मन !

तू इनमें से कुछ चाहता है ? – फिर सन्देशों को देखा, विष्ठा है ! औरतों में एक बुलाक पहने हुए थी । उनका भीतर बाहर सब मुझे दीख पड़ता था – आँतें-मल-मूत्र-हाड़-मांस-खून ! मन ने कुछ न चाहा ।
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“मन उन्हीं के पाद-पद्मों में लगा रहा । निक्ती(काँटेवाला तराजू) के नीचे भी काँटा होता है और ऊपर भी । मन नीचेवाला काँटा है । मुझे सदा ही भय लगा रहता था कि कहीं ऐसा न हो कि ऊपरवाले काँटे से(ईश्वर से) मन विमुख हो जाय । तिस पर एक आदमी सदा ही हाथ में त्रिशूल लिये मेरे पास बैठे रहता था । उसने डराया, कहा, नीचेवाला काँटा ऊपरवाले काँटे स इधर-उधर झुका नहीं कि यही त्रिशूल भोंक दूँगा ।
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“बात यह है कि कामिनी-कांचन का त्याग हुए बिना कुछ होने का नहीं । मैंने तीन त्याग किये थे – जमीन, जोरू और रुपया । भगवान् रघुवीर के नाम की जमीन रजिस्ट्री कराने के लिए मुझे उस देश में(कामारपुकुर में) जाना पड़ा था । मुझसे दस्तखत करने के लिए कहा गया । मैंने दस्तखत नहीं किये । मुझे यह ख्याल था ही नहीं कि यह मेरी जमीन है । रजिस्ट्री आफिसवालों ने केशब सेन का गुरु समझकर मेरा खूब आदर किया था । आम ला दिये, परन्तु घर ले जाने का अख्तियार था ही नहीं, क्योंकि संन्यासी को संचय नहीं करना चाहिए ।
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“त्याग के बिना कोई कैसे उन्हें पा सकता है ? अगर एक वस्तु के ऊपर दूसरी वस्तु रखी हो, तो पहली वस्तु को बिना हटाये दूसरी वस्तु कैसे मिल सकती है ?
“निष्काम होकर उन्हें पुकारना चाहिए । परन्तु सकाम भजन करते करते भी निष्काम भजन होता है । ध्रुव ने राज्य के लिए तपस्या की थी, परन्तु उन्होंने ईश्वर को प्राप्त किया था । उन्होंने कहा था, अगर कोई काँच के लिए आकर कांचन पा जाय तो उसे क्यों छोड़े ?
(क्रमशः)

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