रविवार, 7 फ़रवरी 2021

*ईश्वर-दर्शन के उपाय*

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*दादू कहै, जे कुछ दिया हमको, सो सब तुम ही लेहु ।*
*तुम बिन मन मानै नहीं, दरस आपणां देहु ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*ईश्वर-दर्शन के उपाय*
जयगोपाल – उनकी कृपा कैसे होती है ?
श्रीरामकृष्ण – सदा उनके नाम व गुणों का कीर्तन करना चाहिए, जहाँ तक सम्भव हो सांसारिक चिन्तन का त्याग करना चाहिए । तुम खेती करने के लिए अनेक कष्ट से खेत में जल ला रहे हो, परन्तु खेत की मेंड़ पर के एक छेद में से जल बाहर निकल जा रहा है । तब तो नाली काटकर जल लाना व्यर्थ हुआ, वृथा श्रम ही हुआ ।
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“चित्तशुद्धि होने पर, विषय-भोग की आसक्ति दूर हो जाने पर व्याकुलता आयेगी । तुम्हारी प्रार्थना ईश्वर के पास पहुँचेगी । टेलिग्राफ का तार टूटा रहने पर अथवा उसमें अन्य कोई दोष रहने पर तार का समाचार नहीं पहुँचेगा ।
“मैं व्याकुल होकर एकान्त में रोता था । ‘कहाँ हो नारायण’ कह कर रोता था । रोते-रोते बाह्य ज्ञान लुप्त हो जाता था । मैं महावायु में लीन हो जाता था ।
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“योग कैसे होता है ? टेलिग्राफ का तार टूटा न रहने पर या उसमें कोई दोष न रहने पर होता है । विषयों के प्रति आसक्ति का एकदम त्याग ।
“किसी प्रकार की कामना-वासना नहीं रखनी चाहिए । कामना-वासना रहने पर उसे सकाम भक्ति कहते हैं, निष्काम भक्ति को अहेतुकी भक्ति कहते हैं । तुम प्यार करो या न करो फिर भी मैं तुम्हें प्यार करता हूँ – इसीका नाम है अहेतुक प्रेम !
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“बात यह है, - उनसे प्रेम करना । प्रेम गहरा होने पर दर्शन होता है । पति पर सती का आकर्षण, सन्तान पर माँ का आकार्षण और विषयप्रिय व्यक्ति का सांसारिक विषयों के प्रति आकर्षण – ये तीन आकर्षण यदि एक ही साथ हो तो ईश्वर का दर्शन होता है ।”
जयगोपाल विषयप्रिय व्यक्ति है, क्या इसीलिए श्रीरामकृष्ण उन्हीं के योग्य ये सब उपदेश दे रहे हैं ?
(क्रमशः)

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