बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

*ब्रह्मज्ञान के सम्बन्ध में वार्तालाप*

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*परम तेज तहँ मन रहे, परम नूर निज देखे ।*
*परम जोति तहँ आतम खेले, दादू जीवन लेखे ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ७२*
*दक्षिणेश्वर में राखाल, राम, केदार प्रभृति के साथ*
*ब्रह्मज्ञान के सम्बन्ध में वार्तालाप*
(१)
श्रीरामकृष्ण गाड़ी पर बैठ रहे हैं । कालीमाता के दर्शन के लिए कालीघाट जाएँगे । श्री अधर सेन के घर होकर जाएँगे । वहाँ से अधर भी साथ जायेंगे । आज शनिवार, अमावस्या है २९ दिसम्बर, १८८३ । दिन के एक बजे का समय होगा ।
गाड़ी उनके कमरे के उत्तर के तरफ के बरामदे के पास आकर खड़ी है । मणि गाड़ी के द्वार के पास आकर खड़े हुए ।
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मणि(श्रीरामकृष्ण से) – क्या मैं भी चलूँ ?
श्रीरामकृष्ण – क्यों ?
मणि – एक बार कलकत्ते के मकान से होकर आता ।
श्रीरामकृष्ण(चिन्तित होकर) – फिर जाओगे ? क्यों ? यहाँ अच्छे तो हो ।
मणि घर लौटेंगे, कुछ घण्टों के लिए; परन्तु श्रीरामकृष्ण की इसके लिए सम्मति नहीं है ।
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(२)
आज रविवार, ३० दिसम्बर, पूस की शुक्ला प्रतिपदा है । दिन के तीन बजे होंगे । मणि पेड़ के नीचे अकेले टहल रहे हैं । एक भक्त ने आकर कहा, “प्रभु बुलाते हैं ।” कमरे में श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । मणि ने जाकर प्रणाम किया और जमीन पर भक्तों के बीच बैठ गए ।
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कलकत्ते से राम, केदार आदि भक्त आये हुए हैं । उनके साथ एक वेदान्तवादी साधु भी आए हैं । श्रीरामकृष्ण जिस दिन रामचन्द्र का बगीचा देखने गए थे उस दिन उस साधु से भेंट हुई थी । साधु पासवाले बगीचे में एक पेड़ के नीचे अकेले एक चारपाई पर बैठे हुए थे । राम आज श्रीरामकृष्ण की आज्ञा से उस साधु को अपने साथ लेते आए हैं । साधु ने भी श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी ।
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श्रीरामकृष्ण उस साधु के साथ आनन्दपूर्वक वार्तालाप कर रहे हैं । उन्होंने अपने पास छोटे तख्त पर साधु को बैठाया । बातचीत हिन्दी में हो रही है ।
श्रीरामकृष्ण – यह सब तुम्हें कैसा जान पड़ता है ?
साधु – यह सब स्वप्नवत् है ।
श्रीरामकृष्ण – ब्रह्म सत्य और संसार मिथ्या, यही न ? अच्छा जी, ब्रह्म कैसा है ?
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साधु – शब्द ही ब्रह्म है । अनाहत शब्द ।
श्रीरामकृष्ण – परन्तु शब्द का प्रतिपाद्य भी तो एक है । क्यों जी ?
साधु – वही वाच्य है और वही वाचक भी है ।
(क्रमशः)

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