रविवार, 14 फ़रवरी 2021

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*जो मति पीछे ऊपजै, सो मति पहली होइ ।*
*कबहुं न होवै जीव दुखी, दादू सुखिया सोइ ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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एक साधु मुझसे अध्यात्मक विषयक साधना सीखा करते थे । एक दिन वे अन्य दो व्यक्तियों को कुछ समझा रहे थे । किन्तु समझा रहे थे वह ठीक ठीक उनकी समझ में नहीं आ रहा था । मैंने यह सोचकर कि इन तीनों को इस विषय में भ्रम रहेगा, गलती का संशोधन करना अपना कर्त्तव्य समझ करके कहा - यह विषय अभी आपको ठीक ठाक समझ में नहीं आया है मुझसे पुन: समझ लें । 
इस समय कुछ गृहस्थ सज्जन भी मेरे पास बैठे थे, जब वे लोग चले गये तब उस साधु ने मुझे यह कहते हुए कि - तुम ने गृहस्थों के सम्मुख मुझे यह कैसे कह दिया कि - तुम्हारी समझ में नहीं आया बड़ा उलाहना दिया और आगे जो व्यवहार उसने मेरे साथ किया वैसा यदि भला मनुष्य शत्रु हो तो भी नहीं कर सकता । मेरे चित्त में भी इस व्यवहार से बड़ी ग्लानि हुई। इससे सूचित होता है कि कभी कभी शिक्षक को भी हानि उठानी पड़ती है ।
मानी साधक से कभी, हो शिक्षक को हानि ।
यह मुझको अनुभूत है, भई विशेष ग्लानि ॥१८८॥

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