मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

*चित्-शक्ति और चिदात्मा*

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*हिरदै राम सँभाल ले, मन राखै विश्‍वास ।*
*दादू समर्थ सांइयां, सब की पूरै आस ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*चित्-शक्ति और चिदात्मा*
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श्रीरामकृष्ण – (पंचवटी की ओर देखकर) – इस पंचवटी में मैं बैठता था – ऐसा भी समय आया कि मुझे उन्माद हो गया ! वह समय भी बीत गया ! काल ही ब्रह्म है । जो काल के साथ रमण करती है, वही काली है – आद्यशक्ति अटल को टाल देती है ।
यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे ।
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(भावार्थ) ‘तुम्हारा भाव क्या है, यह सोचते हुए यहाँ तो प्राण ही निकलने पर आ गये ! जिनके नाम से काल भी दूर हट जाता है, जिनके पैरों के नीचे महाकाल पड़े हुए हैं, उनका स्वरूप काला क्यों हुआ ?”
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श्रीरामकृष्ण – आज शनिवार है, आज काली मन्दिर जाना ।
बकुल के पेड़ के नीचे आकर श्रीरामकृष्ण मणि से कह रहे हैं – “चिदात्मा और चित्-शक्ति । चिदात्मा पुरुष हैं और चित्-शक्ति प्रकृति । चिदात्मा श्रीकृष्ण हैं और चित्-शक्ति श्रीराधा । भक्तगण उसी चित्-शक्ति के एक-एक स्वरूप हैं । वे सखी-भाव या दासभाव को लेकर रहेंगे । यही असली बात है ।”
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सन्ध्या हो जाने पर श्रीरामकृष्ण काली-मन्दिर गये । मणि माता का स्मरण कर रहे हैं, यह देखकर श्रीरामकृष्ण प्रसन्न हुए ।
सब देवालयों में आरती हो गयी । श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में तख्त पर बैठे हुए माता का स्मरण कर रहे हैं । जमीन पर सिर्फ मणि बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण समाधिस्थ हो गये हैं ।
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कुछ देर बाद वे समाधि से उतरने लगे; परन्तु फिर भी अभी भाव पूर्ण मात्रा में हैं । श्रीरामकृष्ण माँ से बातचीत कर रहे हैं, जैसे छोटा बच्चा माँ से दुलार करते हुए बातचीत करता है । माँ से करूण स्वर में कह रहे हैं – “माँ, क्यों तूने वह रूप नहीं दिखाया – वही भुवन-मोहन रूप ! कितना मैंने तुझसे कहा । परन्तु कहने से तू सुनेगी काहे को ? – तू इच्छामयी जो है ।”
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श्रीरामकृष्ण ने माँ से ऐसे स्वर में ये बातें कहीं कि जिसे सुनकर पत्थर भी पिघलकर पानी हो जाय !
श्रीरामकृष्ण फिर माँ से बातचीत कर रहे हैं –
“माँ ! विश्वास चाहिए ! यह साला तर्क-विचार दूर हो जाय ! – उसका भरोसा क्या ? वह तो जरा-सी बात से बदल जाता है ! विश्वास चाहिए – गुरुवाक्य में विश्वास – बालक जैसा विश्वास ! – माँ ने कहा, वहाँ भूत है – तो उसने ठीक समझ रखा है कि वहाँ भूत है ! माँ ने कहा, वहाँ हौआ है ! तो इसीको उसने ठीक समझ रखा है । माँ ने कहा, वह तेरा दादा है, तो समझ लिया कि बस सोलहों आने दादा है ! विश्वास चाहिए !
“परन्तु माँ उन्हीं का क्या दोष है ! वे क्या करेंगे ! विचार एक बार तो कर लेना चाहिए ! देखो न, अभी उस दिन इतना समझाकर कहा, परन्तु कुछ न हुआ – आज बिलकुल ....”
(क्रमशः)

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