🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*खोज परे गति जाइ न जानी,*
*अगह गहन कैसे आवे ।*
*दादू अविगत देहु दया कर,*
*भाग बड़े सो पावे ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. २९७)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
(४)
*मुख्य बात – अहैतुकी भक्ति । अपने स्वरूप को जानो ।*
सन्ध्या के पश्चात् श्रीमन्दिर में आरती हो गयी । कुछ देर बाद कलकत्ते से अधर आये । भूमिष्ठ हो उन्होंने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । कमरे में महिमाचरण, राखाल और मास्टर हैं । हाजरा महाशय भी बीच-बीच में आते हैं ।
अधर – आप कैसे हैं ?
श्रीरामकृष्ण – (स्नेह-भरे शब्दों में) – यह देखो, हाथ में लगकर क्या हुआ है । (सहास्य) हैं और कैसे !
.
अधर जमीन पर भक्तों के साथ बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण उनसे कह रहे हैं – “तुम एक बार इस पर हाथ तो फेर दो ।”
अधर छोटी खाट की उत्तर ओर बैठकर श्रीरामकृष्ण की चरण-सेवा कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण फिर महिमाचरण से बातचीत कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण – (महिमा के प्रति) – अहैतुकी भक्ति – तुम इसे अगर साध्य कर सको तो अच्छा हो ।
.
‘मुक्ति, मान, रुपया, रोग अच्छा होना, कुछ नहीं चाहता - मैं बस तुम्हें ही चाहता हूँ !’ इसे अहैतुकी भक्ति कहते हैं । बाबू के पास कितने ही लोग आते हैं – अनेक कामनाएँ करते हैं, परन्तु यदि कोई ऐसा आदमी आता है जो कुछ नहीं चाहता, और केवल प्यार करने के लिए ही बाबू के पास आता है तो बाबू भी उसे प्यार करते हैं ।
“प्रह्लाद की भक्ति अहैतुकी है । ईश्वर पर उनका शुद्ध और निष्काम प्यार है ।”
.
महिमाचरण चुपचाप सुन रहे हैं । श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं ।
“अच्छा, तुम्हारा भाव जैसा है उसी तरह की बातें कहता हूँ, सुनो –
(महिमा के प्रति) “वेदान्त के मत से पाने स्वरूप को पहचानना चाहिए, परन्तु अहं का बिना त्याग किये नहीं होता । अहं एक लाठी की तरह है – मानो पानी को उसने दो भागों में अलग कर रखा है । ’मैं’ अलग और ‘तुम’ अलग ।
“समाधि की अवस्था में इस अहं के चले जाने पर ब्रह्म की साक्षात् अनुभूति होती है ।
‘मैं महिमाचरण चक्रवर्ती हूँ, मैं विद्वान हूँ, इसी ‘मैं’ का त्याग करना होगा । विद्या के ‘मैं’ में दोष नहीं है । शंकराचार्य ने लोगों को शिक्षा देने के लिए विद्या का ‘मैं’ रखा था ।
.
“स्त्रियों में सम्बन्ध में खूब सावधान रहे बिना ब्रहमज्ञान नहीं होता इसीलिए गृहस्थी में उसकी प्राप्ति कठिन बात है । चाहे जितने बुद्धिमान क्यों न बनो, काजल की कोठरी में रहने से स्याही जरुर लग जायगी । युवतियों के साथ निष्काम मन में भी कामना की उत्पत्ति हो सकती है ।
“परन्तु जो ज्ञान के पथ पर है उसके लिए अपनी पत्नी के साथ भोग कर लेना इतने दोष की बात नहीं – जैसे मल और मूत्र त्याग; वैसे ही यह भी – और जैसे शौच की बाद में हमें याद भी नहीं रहती ।
‘छेने की मिठाई कभी खा ही ली !” महिमाचरण हँसते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें