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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ उपजणि का अंग २८ - १६/१७)*
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*दादू मालिक कह्या अरवाह सौं, अरवाह कह्या औजूद ।*
*औजूद आलम सौं कह्या, हुकम खबर मौजूद ॥१६॥*
इस पद्य से यही ज्ञान परंपरा यवनों को समझा रहे हैं । ईश्वर ने फरिश्ताओं से कहा-फरिश्ता ने शरीरधारी पीरों को और पीरों ने संसार को दिया । यही दोनों परंपरा अब तक संसार में चल रही है ।
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*॥ उपजणि ॥*
*दादू जैसा ब्रह्म है, तैसी अनुभव उपजी होइ ।*
*जैसा है तैसा कहै, दादू विरला कोइ ॥१७॥*
*॥ इति उपजणि कौ अंग संपूर्ण समाप्त ॥२८॥*
यथार्थ का अनुभवी ज्ञानी ही यथार्थ उपदेश दे सकते हैं । दूसरा नहीं, इसलिये जैसे ब्रह्म है वैसा ज्ञान वक्ता में होना चाहिये ।
कठ में कहा है कि- अल्पज्ञान मनुष्यों के द्वारा बतलाये जाने पर भी और उसके अनुसार बहुत प्रकार से चिन्तन किया जाने पर भी यह आत्म तत्त्व सहज में आ जाय, ऐसा नहीं है । किसी दूसरे ज्ञानी पुरुष के द्वारा उपदेश किये बिना इस विषय में मनुष्य का प्रवेश नहीं हो सकता । क्योंकि आत्मा सूक्ष्म वस्तु से भी सूक्ष्म है और तर्कातीत है ।
*॥ इति उपजणि के अंग का पं. आत्माराम स्वामी कृत भाषानुवाद समाप्त ॥२८॥*
(क्रमशः)

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