शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

*ईश्वर को किस प्रकार पुकारना चाहिए*

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*दादू विरहनी कुरलै कुंज ज्यूं, निशदिन तलफत जाइ ।*
*राम सनेही कारणै, रोवत रैन विहाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(२)
*ईश्वर को किस प्रकार पुकारना चाहिए । व्याकुल होओ ।*
श्रीरामकृष्ण बच्चे की तरह फिर हँस रहे हैं और बातचीत कर रहे हैं – जैसे बालक ज्यादा बीमार पड़ने पर भी कभी कभी हँसी-खेल की ओर चला जाता है । श्रीरामकृष्ण महिमा आदि भक्तों से बातचीत कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - सच्चिदानन्द को प्राप्त नहीं किया तो कुछ न हुआ, भाई ।
“विवेक और वैराग्य के सदृश और दूसरी चीज नहीं है ।
“संसारियों का अनुराग क्षणिक है । तभी तक है जब तक तपे हुए तवे पर पानी रहता है ! – कभी शायद एक फूल को देखकर कह दिया – अहा ! ईश्वर की कैसी विचित्र सृष्टि है !”
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व्याकुलता चाहिए । जब लड़का सम्पत्ति का अपना हिस्सा अलग कर देने के लिए अपने माँ-बाप को परेशान करने लगता है तब माँ-बाप दोनों आपस में सलाह करके लड़के का हिस्सा तुरन्त दे देते हैं । व्याकुल होने से ईश्वर जरुर सुनेंगे । जब उन्होंने हमें पैदा किया है, तब सम्पत्ति में हमारा भी हिस्सा है । वे अपने बाप, अपनी माँ हैं – उन पर अपना जोर चल सकता है । हम उनसे कह सकते हैं, ‘मुझे दर्शन दो, नहीं तो गले में छुरी मार लूँगा ।’
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किस तरह माँ को पुकारना चाहिए, श्रीरामकृष्ण बतला रहे हैं ।
– मैं माँ को इस तरह पुकारता था – माँ आनन्दमयी, तुम्हें दर्शन देना होगा ।
“फिर कभी कहता था – हे दीनानाथ ! जगन्नाथ ! मैं जगत् से अलग थोड़े ही हूँ ? मैं ज्ञानहीन हूँ, भक्तिहीन हूँ, साधनहीन हूँ, मैं कुछ भी नहीं जानता – कृपा करके दर्शन देना होगा !”
श्रीरामकृष्ण अत्यन्त करुण स्वर में गाने के ढंग पर बतला रहे हैं, किस तरह उन्हें पुकारना चाहिए । वह करूण स्वर सुनकर भक्तों का हृदय द्रवीभूत हो रहा है, महिमाचरण की आँखों से धारा बह रही है ...
महिमाचरण को देखकर श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं – “मन ! जिस तरह पुकारना चाहिए, उसी तरह तुम पुकारो तो सही, फिर देखो, कैसे श्यामा रह सकती है !”
(क्रमशः)

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