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*दादू सेवक सांई का भया, तब सेवक का सब कोइ ।*
*सेवक सांई को मिल्या, तब सांई सरीखा होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*५. हनुमान् जी*
*इन्दव-*
*राम के काम सरे सब ही,*
*जबही हनुमंत लियो हँसि बीरो१ ।*
*लंक प्रजार सिया को संदेश ले,*
*आय दिई रघुनाथ हि धीरो२ ॥*
*राम चढ़े जिहि याम हनू सँग,*
*जाय परे दल सागर तीरो ।*
*राघो कहै जँग जीत रमापति,*
*लंक विभीषण को दिई थीरो३ ॥८०॥*
केसरी की पत्नी अँजना देवी के गर्भ से वायु द्वारा उत्पन्न महावीर हनुमान् जी ने जब हँसकर रामजी का कार्य करना स्वीकार१ किया था तब रामजी के सभी कार्य सिद्ध हुये थे ।
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हनुमान् जी ने रामजी का समाचार सीताजी को सुनाया तथा लंका को जलाया । सीताजी का समाचार लेकर रामजी के पास आये और उन्हें सुनाते हुये धैर्य२ बँधाया ।
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जिस पहर(मध्यान्ह) में रामजी ने हनुमान् जी के साथ लंका पर चढाई की थी वह विजय मुहूर्त्त था । वहाँ से चल कर वानर सेना के साथ समुद्र तट पर आकर पड़ाव डाला फिर सागर पर सेतु बाँध कर तथा ...
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रावण को युद्ध में मार कर विजय प्राप्त की । फिर रमापति राम ने दीर्घ काल तक स्थिर३ रहने वाला लंका का राज्य भक्त विभीषण को देकर सफल मनोरथ होने से स्थिर चित्त हुये ।
(क्रमशः)

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