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🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*तहँ वचन अमोलक सब ही सार,*
*तहँ बरतै लीला अति अपार ।*
*उमंग देइ तब मेरे भाग,*
*तिहि तरुवर फल अमर लाग ॥*
*अलख देव कोइ जाणैं भेव,*
*तहँ अलख देव की कीजै सेव ।*
*दादू बलि बलि बारंबार,*
*तहँ आप निरंजन निराधार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ३६९)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण माँ के पास करुणापूर्ण गद्गद स्वर से रोते हुए प्रार्थना कर रहे हैं । क्या आश्चर्य है ! भक्तों के लिए माँ के पास रो रहे हैं – “माँ, तुम्हारे पास जो लोग आते हैं उनका मनोरथ पूर्ण करो ! – सब त्याग न करना, माँ ! अच्छा, अन्त में जैसा तुम्हें समझ पड़े करना !
“माँ, संसार में अगर रखना तो एक बार दर्शन देना । नहीं तो कैसे रहेंगे ? एक एक बार दर्शन दिये बिना उत्साह कैसे होगा, माँ ! – इसके बाद अन्त में चाहे जो करना ।”
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श्रीरामकृष्ण अब भी भावावेश में हैं । उसी अवस्था में एकाएक मणि से कह रहे हैं – “देखो तुमने जो कुछ विचार किया वह बहुत हो गया है । अब बस करो । कहो, अब तो विचार नहीं करोगे ?”
मणि हाथ जोड़कर कह रहे हैं “जी नहीं, अब नहीं करूँगा ।”
श्रीरामकृष्ण – बहुत हो चुका ! – तुम्हारे आते ही तो मैंने तुम्हें बतला दिया था – तुम्हारा आध्यात्मिक ध्येय । मैं यह सब तो जानता हूँ ।
मणि – (हाथ जोड़कर) – जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण – तुम्हारे लड़के हुए हैं, सुनकर तुम्हें फटकारा था – अब जाकर घर में रहो – उन्हें दिखाना कि तुम उनके अपने आदमी हो, परन्तु भीतर से समझे रहना, तुम भी उनके अपने नहीं हो और वे भी तुम्हारे अपने नहीं ।
मणि चुपचाप बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण फिर कहने लगे – “अपने पिता को संतुष्ट रखना । अब उड़ना सीखा है तो भी उनसे प्रेम रखना । तुम अपने पिता को साष्टांग प्रणाम कर सकोगे न ?
मणि – (हाथ जोड़े हुए) – जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण – तुम्हें और क्या कहूँ, तुम तो सब जानते हो – सब समझ गये हो । (मणि चुपचाप बैठे हैं ।)
श्रीरामकृष्ण- सब समझ गये हो न ?
मणि – जी हाँ, कुछ कुछ समझा हूँ ।
श्रीरामकृष्ण – नहीं, तुम्हारी समझ में बहुत कुछ आता है । राखाल यहाँ है, इससे उसके पिता को संतोष है ।
मणि हाथ जोड़े चुपचाप बैठे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं – तुम जो कुछ सोच रहे हो, वह भी हो जायगा ।
श्रीरामकृष्ण अब अपनी साधारण दशा में आ गये हैं । कमरे में राखाल और रामलाल बैठे हैं । रामलाल से उन्होंने गाने के लिए कहा । रामलाल ने दो गाने गाये ।
श्रीरामकृष्ण – माँ और जननी । जो संसार के रूप में सर्वव्यापिनी हैं वे माँ हैं, और जो जन्मस्थान है वे जननी । माँ कहते ही मुझे समाधि हो जाती थी । - माँ कहते हुए मानो जगज्जननी को आकर्षित कर लेता था ! जैसे धीवर जाल फेंकते हैं, फिर बड़ी देर बाद जाल खींचते रहते हैं । फिर उसमें बड़ी-बड़ी मछलियाँ आ जाती हैं ।
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गौरी पण्डित का कथन । काली और श्रीगौरांग एक हैं ।
“गौरी ने कहा था, काली और श्रीगौरांग को एक समझने पर ज्ञान पक्का होगा । जो ब्रह्म हैं, वही शक्ति काली है, वही नर के स्वरूप में श्रीगौरांग हैं ।”
श्रीरामकृष्ण की आज्ञा पाकर रामलाल ने फिर गाना शुरू किया । गाना समाप्त होने पर श्रीरामकृष्ण ने मणि से कहा – “जो नित्य हैं, उन्हीं की लीला है – भक्तों के लिए । उन्हें जब नररूप में देख लेंगे तभी तो भक्त उन्हें प्यार कर सकेंगे ? तभी तो उन्हें भाई, बहन, माँ, बाप और सन्तान की तरह प्यार कर सकेंगे ? वे भक्तों की प्रीति के कारण छोटे होकर लीला करने के लिए आते हैं ।”
(क्रमशः)

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