#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
काल गिरासे जीव को, पल पल श्वासैं श्वास ।
पग पग मांहि दिन घड़ी, दादू लखै न तास ॥
पाव पलक की सुधि नहीं, श्वास शब्द क्या होइ ।
कर मुख मांहि मेलतां, दादू लखै न कोइ ॥
दादू काया कारवीं, देखत ही चल जाइ ।
जब लग श्वास शरीर में, राम नाम ल्यौ लाइ ॥
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साभार : पँ. शिवप्रसाद त्रिपाठी 'आचार्य'
मित्रो ! इस संसार मेँ मानव जन्म अति दुर्लभ है । इसके द्वारा परमात्मा की प्राप्ति तो हो सकती है किन्तु कोई यह नहीँ जान सकता कि इसका अन्त कब आने वाला है । अतः बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह यौवन एवं बृद्धावस्था का विश्वास न करे और बाल्यावस्था सेही प्रभु प्राप्ति के लिए साधन करेँ ।
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माता पिता को चाहिए कि अपनी संतानोँ मेँ धार्मिक संस्कारो को उत्पन्न करेँ । बृद्धावस्था मेँ देह सेवा तो हो सकती है किन्तु देव सेवा नहीँ । मानव शरीर की प्राप्ति भोगोपभोग के लिए नहीँ बल्कि भगवद् भजन एवं प्रभु प्राप्ति हेतु हुई है । ईश्वर नित्य है और शरीर अनित्य, किन्तु इसी अनित्य शरीर से ही नित्य ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है, अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह हमेशा आत्माकल्याण की प्रवृत्ति करे.... क्योकि ...
"यावत् स्वस्थमिदं कलेवरगृह यावच्च दूरे जरा ।
यावच्चेन्द्रियश क्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः ॥
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान् ।
प्रोद्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥
....जब तक यहशरीररुपी गृह स्वस्थ है, जब तक बृद्धावस्था का आक्रमण नहीँ हो पाया है, जब तक इन्द्रियोँ की शक्ति भी क्षीण नहीँ हुई है, आयुष्य का क्षय भी नहीं हुआ है, सयाने व्यक्ति को चाहिए कि तब तक यह अपने आत्मकल्याण का प्रयत्न कर ले, अन्यथा घर मेँ आग लग जाने पर कुआँ खोदने से क्या लाभ होगा ?

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