शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

*= तृतीय बिन्दु = वियोग से व्यथित =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ तृतीय विन्दु ~*
*= वियोग से व्यथित =*
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दादूजी वृद्ध भगवान् के वियोग से व्यथित होकर वहाँ ही बैठ गये और वृद्ध भगवान् के उपदेशानुसार निर्गुण ब्रह्म का ध्यान करने लगे । फिर बालकों ने जाकर अपने अपने भाव अनुसार, लोधीरामजी को वृद्ध भगवान् का परिचय दिया ।
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एक ने कहा - तालाब पर एक बूढ़ा आया था, वह कालरूप प्रतीत हो रहा था ।
दूसरे ने कहा - वह अति डरावना था ।
तीसरे ने कहा - वह बालकों को पकड़ने वाला था ।
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इसी प्रकार बालकों ने अपने अपने भावों के अनुसार अनेक बातें कहीं । फिर सबने कहा हम तो उस बुड्ढे को देखकर डर के मारे भाग आये थे किंतु दादू तो उस के पास चला गया, डरा नहीं, फिर हम दूर से देख रहे थे । उस बुड्ढे ने भी दादू से बहुत प्यार किया, किंतु हमको दूर से ही डर लग रहा था, इस से हम तो अपने मोहल्ले में आ गये ।
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फिर कुछ देर के पश्चात् हम देखने गये तो बुड्ढा तो नहीं था किंतु दादू वहां आँखे बंद कर के बैठा है । हम तो डर के मारे दादू के पास जाकर उससे पूछ भी नहीं सके कि तुम यहां क्यों बैठे हो ? हमें यह संशय था कि उस बुड्ढे ने दादू पर कोई मंत्र किया हो भुरकी डाली हो तो उसका असर हमारे पर न आजाय । इसलिये हम तो उससे बिना बोले ही उसे देखकर आगये हैं ।
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उक्त बालकों की बातें सुनकर लोधीराम स्वयं ही कांकरिये तालाब पर जहां दादूजी ध्यानस्थ थे वहां जाकर देखा तो उन्हें दादूजी परम तृप्त दिखाई दिये । लोधीरामजी ने पूछा - यहां क्यों बैठे हो ? आरती का समय हो रहा है, घर चलो ।
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दादूजी ने कहा - यहां मुझे गुरु के रूप में वृद्ध भगवान् मिले थे और मुझे निर्गुण ब्रह्म की भक्ति करने का उपदेश किया था । इस से उनका ध्यानकर रहा हूँ ।
लोधीराम - वे तुम्हारे गुरु कौन थे ? कैसे थे ?
(क्रमशः)

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