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*साचे साहिब को मिले, साचे मारग जाइ ।*
*साचे सौं साचा भया, तब साचे लिये बुलाइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---माता पिता की भक्ति
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उद्दालक ऋषि ने विश्वजित नामक यज्ञ किया था । दक्षिणा बांटते समय अति वृद्ध गोओं का दान करते देख नचिकेता ने पिता से पूछा मैं भी तो आपका धन हूँ मुझे किसे देंगे, यही प्रश्न जब तीन बखत किया तब क्रोधित ऋषि ने कहा 'तुझे यमराज को देता हूँ ।' सुनते ही नचिकेता यमराज के घर चले गये और यम को प्रसन्न कर पीछे भी लौट आये थे ।
आज्ञा होत हि मध्य सुत, करते पितु का काम ।
नचिकेता यम पै गया, शीध्र त्याग निजधाम ॥२६॥
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