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*काया मांहैं क्यों रह्या, बिन देखे दीदार ।*
*दादू बिरही बावरा, मरै नहीं तिहिं बार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)*
https://youtu.be/Rvzcgxp6_CM
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*श्रृंगवेरपुर के भीलराज गुह की पद्य टीका*
इन्दव –
*गुह किरातन को पति राम हि,*
*आय मिल्यो वनवास सुन्यो है ।*
*राज करो यह मो सुख ध्यो प्रभु,*
*साज तज्यो पितु बैन गुन्यो है ॥*
*दीरघ दुःख विछोह बहै दृग,*
*लोहू चल्यो फिर शीश धुन्यो है ।*
*आँख न खोलत राम बिना मुख,*
*और न देखत प्रेम पुन्यो है ॥८४॥*
वन में जाते समय जब राम गंगा तट श्रृंगवेरपुर पहुँचे तब वहां के भीलों के राजा गुह आकर रामजी से मिले और सुना कि पिता ने चौदह वर्ष का वनवास दिया है...
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तब कहा – प्रभो ! आप यहां का राज्य कीजिये और मुझे सुख प्रदान कीजिये । राम जी ने कहा – मैंने पिता के वचन को विचार पूर्वक मान के संपूर्ण भोग सुखों के साधन त्याग दिये हैं । यह कहकर राम ने गुह को समझाया और वहां से चित्रकूट चले गये ।
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तब राम वियोग का दुःख उन्हें बहुत सताने लगा । प्रथम तो उनके नेत्रों से पानी ही बहता था किन्तु कुछ दिन के पश्चात् रक्त बहने लगा । तब उन्होंने मस्तक धुन कर सोचा । बड़ा कष्ट है, रामजी वन में कैसे रहते होंगे ।
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आप नेत्र तो खोलते ही नहीं थे, उनका विचार था, राम जी को छोड़कर अन्य किसी का मुख नहीं देखना है । वे अन्य किसी को भी नहीं देखते थे, इस प्रकार गुहजी का राम में पवित्र प्रेम था, जिसकी समता करना अन्य से कठिन ही है ।
(क्रमशः)
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