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*दादू नीका नांव है, सौ तू हिरदय राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर करि, सुन साधुजन की साखि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
https://youtu.be/r4fdLMQM1wo
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*गृही भक्तों की स्त्रियाँ को उपदेश*
दो भक्तों की स्त्रियों ने आकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । वे श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने आयी हैं, इसलिए उपवास किये हुई है । दोनों ही घूँघटवाली, दो भाइयों की पत्नियाँ हैं । उम्र यही २२-२३ वर्ष के भीतर ही होगी । दोनों ही पुत्रों की माताएँ हैं ।
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श्रीरामकृष्ण – (स्त्रियों के प्रति) – देखो, तुम शिवपूजा किया करो । कैसे पूजा करनी होती है, ‘नित्यकर्म’ नाम की पुस्तक है, उसे पढ़कर देख लेना । देवपूजा करने से बहुत देर तक देवता का काम कर सकोगी । फूल चुनना, चंदन घिसना, देवता के बर्तनों को मलना, देवता के लिए जलपान की सामग्री को सजाना – ये सब काम करने से उधर ही मन लगा रहेगा । नीच बुद्धि, क्रोध ये सब भाग जायेंगे । तुम दोनों – देवरानी जेठानी जब आपस में बातचीत किया करो, तो देवताओं की ही बातें किया करो ।
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“किसी प्रकार से ईश्वर में मन को लगा देना । एक बार भी उनकी विस्मृति न हो । जैसे तेल की धार – उसके बीच कुछ और नहीं है । एक ईंट या पत्थर को भी यदि ईश्वर मानकर भक्ति के साथ उसकी पूजा करो, तो उससे भी उनकी कृपा से ईश्वर-दर्शन हो सकता है ।
“पहले जो कहा, शिवपूजा – यह सब पूजा करनी चाहिए । उसके बाद मन पक्का हो जाने पर अधिक दिन पूजा नहीं करनी पड़ती । उस समय सदा ही मन का योग बना रहता है – सदा ही स्मरण-मनन होता रहता है ।”
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बड़ी बहू – (श्रीरामकृष्ण के प्रति) – हमें क्या कृपा कर कुछ मन्त्र दे देंगे ?
श्रीरामकृष्ण – (स्नेह के साथ) – मैं तो मन्त्र नहीं देता ? मन्त्र देने से शिष्य का पाप-ताप लेना पड़ता है । माँ ने मुझे बच्चे की स्थिति में रखा है । अब तुम्हें जो शिवपूजा के लिए कह दिया है वही करो । बीच-बीच में आती रहना, बाद में ईश्वर की इच्छा से जो होने का है, होगा । स्नान-यात्रा के दिन फिर आने की चेष्टा करना ।
“घर पर हरिनाम करने के लिए मैंने जो कहा था, क्या वह हो रहा है ?”
बहू – जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण – तुम लोग उपवास करके क्यों आयी हो ? खाकर आना चाहिए ।
”स्त्रियाँ मेरी माँ का एक-एक रूप हैं न; इसीलिए मैं उनका कष्ट नहीं देख सकता । जगन्माता का एक-एक रूप । खाकर आओगी, आनन्द में रहोगी ।”
यह कहकर श्री रामलाल को आदेश दिया कि वह उन बहुओं को जलपान कराये । फलहारिणी पूजा का प्रसाद – लूची, तरह-तरह के फल, ग्लास ग्लास भर शरबत और मिठाई आदि उन्होंने ग्रहण किया ।
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श्रीरामकृष्ण ने कहा, “तुम लोगों ने कुछ खा लिया तो अब मेरा मन शान्त हुआ । मैं स्त्रियों को उपवासी नहीं देख सकता ।”
श्रीरामकृष्ण शिवमन्दिर की सीढ़ी पर बैठे हैं । दिन के पाँच बजे का समय होगा । पास ही अधर, डॉक्टर, निताई, मास्टर आदि दो-एक भक्त बैठे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (भक्तों के प्रति) – देखो, मेरा स्वभाव बदलता जा रहा ।
अब कुछ गुह्य बातें कहने के उद्देश्य से एक सीढ़ी नीचे उतरकर भक्तों के पास जा बैठे ।
(क्रमशः)
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