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*हिरदै की हरि लेइगा, अंतरजामी राइ ।*
*साच पियारा राम को, कोटिक करि दिखलाइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- माता पिता की भक्ति
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शिवशर्मा के चारों पुत्र परमधाम चले गये । शिवशर्मा अपने पंचमपुत्र सोमशर्मा को अमृतघट देकर तथा उसकी रक्षा का भार सौंपकर अपनी पत्नि सहित तीर्थ यात्रा को चले गये । दश वर्ष पश्चात दोनों कोढी का रूप बना कर आये । सोमशर्मा उनकी सब प्रकार की सेवा बड़े प्रेम से करता था फिर भी वे उसे कटु वचन कहते, डंडों से पीटते तो भी वह उनमें दोष नहीं देखता था । अन्त में अमृतघट का अमृत योगबल से शिवशर्मा ने हरण करके, पुत्र से कहा - "अमृत का घड़ा ले आओ उसके पीने से हम अच्छे हो जायेंगे।"
सोमशर्मा अमृतघट के पास गया किन्तु उसमें एक बूंद भी अमृत न था । यह देखकर सोमशर्मा बोला - "यदि मैं अपने धर्म में ही स्थित हूँ तो यह घट अमृत से भर जाय ।" इतना कहते ही वह घट अमृत से भर गया । उसे लेकर पिता के पास गया । पिता ने उसकी ऐसी दृढ भक्ति देखकर प्रसन्न हो गये तथा कोढी का रूप त्याग कर अच्छे भी हो गये ।
भक्त पुत्र मां पिता का, दोष न लखता लेश ।
नहीं सोमशर्मा लखा, पितु ने दिया कलेश ॥३७॥
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