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*आज्ञा मांही बाहर भीतर, आज्ञा रहै समाइ ।*
*आज्ञा मांही तन मन राखै, दादू रहै ल्यौ लाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- पतिव्रत
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एक खाती के पतिव्रता स्त्री थी । उसके दर्शन करने एक सज्जन खाती के घर आये । खाती अपने घर के द्वार में काम कर रहा था । आगत सज्जन का स्वागत करके बोला - "कहिये कैसे पधारे ?" सज्जन- "सुना है आपकी पत्नी पतिव्रता है" उनके दर्शन करने आया हूँ ।" खाती ने अपनी पत्नी को आवाज दी कि - "जिस अवस्था में हो उसी में यहाँ आ जाओ" वह घी डाल रही थी, उसी अवस्था में घी पृथ्वी में गिराती हुई पास आ गई ।
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कुछ क्षण के बाद कहा "जाओ" वह चली गई । आगत सज्जन ने पूछा - वह घी गिराती हुई क्यों आई ? घी का पात्र रखकर के आती या सीधा करके आती - "यह हानि लाभ नहीं देखती, केवल मेरी आज्ञा जैसी होती है वैसा ही करती है" सज्जन प्रसन्न होकर लौट गये ।
पति आज्ञा पाले सती, हानि लखे लव नांहि ।
खाती तिय घी डालती, आई क्षण ही मांहिं ॥५८॥
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