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*माया फाँसी हाथ ले, बैठी गोप छिपाहि ।*
*जे कोई धीजे प्राणियां, ताही के गल बाहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(२)
*कामिनी कांचन के सम्बन्ध में उपदेश*
श्रीरामकृष्ण - बन्धन का कारण कामिनी कांचन है । कामिनी कांचन ही संसार है । कामिनी कांचन ही हमें ईश्वर को देखने नहीं देता । यह कहकर श्रीरामकृष्ण ने अंगौछे से मुख छिपा लिया । फिर कहा, "क्या अब तुम लोग मुझे देख रहे हो ? यही आवरण है । यह कामिनी कांचन का आवरण दूर हुआ नहीं कि चिदानन्द मिले । “देखो न, जिसने स्थी का सुख छोड़ा उसने संसार का सुख छोड़ा, ईश्वर उसके बहुत निकट हैं ।"
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कोई भक्त बैठे, कोई खड़े ये सब बातें सुन रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (केदार, विजय आदि से)- स्त्री का सुख जिसने छोड़ा, उसने संसार का सुख छोड़ा । यह कामिनी कांचन ही आवरण है । तुम्हारे इतनी बड़ी बड़ी मूछे हैं, तो भी तुम लोग उसी में हो ! कहो, मन ही मन विचार करके देखो ।
विजय - जी हाँ, यह सच है ।
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केदार चुप हैं । श्रीरामकृष्ण फिर कहने लगे- “सभी को देखता हूँ, स्त्रियों के वशीभूत हैं । मैं कप्तान के घर गया था । वहाँ से होकर राम के घर जाना था । इसलिए कप्तान से कहा- 'गाड़ी का किराया दे दो ।' कप्तान ने अपनी स्त्री से कहा । वह स्त्री भी वैसी ही थी - ‘क्या हुआ' 'क्या हुआ' करने लगी ! अन्त में कप्तान ने कहा, 'खैर वे ही लोग (राम आदि) दे देंगे ।' गीता-भागवत-वेदान्त सब स्त्री के सामने झुकते हैं । (सब हँसते हैं ।)
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“रुपया-पैसा और सर्वस्व बीबी के हाथ में ! और फिर कहा जाता है मैं दो रुपये भी अपने पास नहीं रख सकता - न जाने मेरा स्वभाव कैसा है ।
बड़े बाबू के हाथ में बहुत से काम है, परन्तु वे किसी को देते नहीं । एक ने कहा गुलाब-जान के पास जाकर सिफारिश कराओ तो काम हो जायगा । गुलाब जान बड़े बाबू की रखेली है ।
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"पुरुषों में यह समझ नहीं रह गयी कि देखें कि वे स्त्रियों के कारण कितना उतर गये हैं ।
"किले में जब गाड़ी पर सवार होकर पहुंचा तब जान पड़ा कि मैं साधारण रास्ते से होकर आया । वहाँ पहुँचने पर देखा तो चार मंजिल नीचे चला गया था । रास्ता ढालू था । तब जिसे भूत पकड़ता है, वह नहीं समझ सकता है कि उसे भूत लगा है । यह सोचता है, मैं बिलकुल ठीक हूँ ।"
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विजय - (सहास्य) - कोई ओझा मिल गया तो वह उत्तर देता है । श्रीरामकृष्ण ने इसका विशेष उत्तर नहीं दिया, केवल कहा, वह ईश्वर की इच्छा है । वे फिर स्त्रियों के सम्बन्ध में कहने लगे ।
श्रीरामकृष्ण - जिससे पूछता हूँ, वही कहता है, जी हाँ, मेरी स्त्री अच्छी है । किसी की स्त्री खराब नहीं निकली । (सब हँसते हैं ।)
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"जो लोग कामिनी कांचन लेकर रहते हैं, वे नशे में कुछ समझ नहीं पाते । जो लोग शतरंज खेलते हैं, वे बहुत समय तक नहीं समझते कि कौनसी चाल ठीक होगी; परन्तु जो लोग अलग से देखते हैं वे बहुत कुछ समझते हैं ।
"स्त्री मायारूपिणी है । नारद राम की स्तुति करते हुए कहने लगे - हे राम, जितने पुरुष हैं, सब तुम्हारे ही अंश से हुए हैं और जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब माया रूपिणी सीता के अंश से हुई हैं । मैं और कोई वरदान नहीं चाहता । यही करो जिससे तुम्हारे पादपद्मों में शुद्धा भक्ति हो । फिर तुम्हारे मोहिनी-माया में मुग्ध न होऊँ ।
(क्रमशः)
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