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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज,व्याकरण वेदांताचार्य श्रीदादू द्वारा बगड़,झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज,बगड़ झुंझुनूं । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ विनती कौ अंग ३४ - ४०/४३)*
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*पिंड परोहन सिन्धु जल, भव सागर संसार ।*
*राम बिना सूझै नहीं, दादू खेवनहार ॥४०॥*
यह हमारा शरीर ही जो मिट्टी का पिण्ड है वह ही नौका है । संसार ही समुद्र है । इसमें विषयरूपी जल में यह पिण्डरूपी नौका डूब रही है । इस भवसागर के विषय जल से पार करने वाला राम के अलावा अन्य कोई दृष्टिगोचर नहीं होता । राम ही खेवटिया बनकर पार कर सकते हैं ॥४०॥
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*यहु घट बोहित धार में, दरिया वार न पार ।*
*भैभीत भयानक देखकर, दादू करी पुकार ॥४१॥*
अपार संसार समुद्र में बहते हुए शरीर को देख का मैं अत्यन्त भयभीत हो रहा हूँ । हे राम ! मेरे मन को भय लग रहा है कि इस को कैसे पार करूंगा हे राम ! मैं आप की शरण में हूँ अतः आप ही इस शरीर नौका को पार लगावेगें ॥४१॥
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*कलियुग घोर अंधार है, तिसका वार न पार ।*
*दादू तुम बिन क्यों तिरै, समर्थ सिरजनहार ॥४२॥*
यह कलिकाल पाप रूपी महान् अन्धकार से परिपूर्ण है । इसका पारावार भी नहीं मालुम होता है । अतः हे सृष्टि के बनाने वाले सर्वसमर्थ परमात्मन् ! आपकी कृपा के बिना इसको हम कैसे पार कर सकते हैं । आप दया करके पार लगाईये ॥४२॥
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*काया के वश जीव है, कस कस बँध्या मांहि ।*
*दादू आत्मराम बिन, क्यों ही छूटै नांहि ॥४३॥*
यह जीवात्मा इस शरीर में स्थित होने के कारण इसमें अध्यास करके अत्यधिक बन्धनों में बंधा हुआ है और विशेष कर के माया के बन्धन में बंधा हुआ है । अतः जब तक इस जीव को आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता तब तक किसी भी प्रकार से मुक्त नहीं हो सकता ॥४३॥
(क्रमशः)
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