रविवार, 4 अप्रैल 2021

*१५. माया कौ अंग ~ ६१/६४*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१५. माया कौ अंग ~ ६१/६४*
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माया मैली चोरटी७, डहक्या८ सब संसार ।
जगजीवन कोइ जीव कूं, राखै सिरजनहार ॥६१॥
(७. चोरटी=चौर स्त्री) (८. डहक्या=धोखा दिया)
संतजगजीवन जी कहते है कि माया गंदी है यह जीवतत्व चोरती है सारा संसार इससे धोखा खा जाता है वह ही सुरक्षित है जिसे परमात्मा बचाते हैं ।
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नारी बांछै पुरुष कूं, पुरुष नारि सूं नेह ।
जगजीवन स्वारथ बंधी, पाप भरी सब देह ॥६२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि स्त्री पुरुष को चाहती है व पुरुष स्त्री से स्नेह करता है यह देह पापों से परिपूर्ण है और स्वार्थों से बंधी है ।
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नरक पड़्या सो देखतां, नर नारी के साथ ।
जगजीवन विष बिलसतां, कछू न आया हाथ ॥६३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं किस्त्री पुरुष का केवल संग अधोगामी है । वह नर्क की और ले जाता है । विषयों मे ही रमे रहने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता है ।
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एही बेटी बहन ए, एही जननी जोइ ।
जगजीवन एही त्रिया, नांच नचावै मोइ ॥६४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि स्त्री देह ही कभी पुत्री कभी बहन व कभी माता होती है यह हर रुप में रिश्ते में नाच नचाती रहती है ।
(क्रमशः)

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