गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

*श्रीरामकृष्ण की विज्ञानि स्थिति*

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*जीव जन्म जाणै नहीं, पलक पलक में होइ ।*
*चौरासी लख भोगवै, दादू लखै न कोइ ॥*
*अनेक रूप दिन के करै, यहु मन आवै जाइ ।*
*आवागमन मन का मिटै, तब दादू रहै समाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ सूक्ष्म जन्म का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*श्रीरामकृष्ण की विज्ञानि स्थिति*
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हरि – अच्छा, संसार में इतने दुःख क्यों है ?
श्रीरामकृष्ण – यह संसार उनकी लीला है, खेल की तरह । इस लीला में सुख-दुःख, पाप-पुण्य, ज्ञान-अज्ञान भला-बुरा सब कुछ है; दुःख, पाप ये सब न रहने से लीला नहीं चलती ।”
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“लुका-लुकौवल खेल में खूँटी छूना पड़ता है । खेल के प्रारम्भ में ही ढाई छूने पर वह सन्तुष्ट नहीं होती । ईश्वर(ढाई) की इच्छा है कि खेल कुछ देर तक चलता रहे । उसके बाद – ‘लाखों पतंगों में से दो एक कटते हैं, माँ, तब तुम हँसती हुई हथेली बजाती हो !’
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“अर्थात् ईश्वर का दर्शन करके एक-दो व्यक्ति मुक्त हो जाते हैं – बहुत तपस्या के बाद, उनकी कृपा से । तब माँ आनन्द से हथेली बजाती है – ‘ओहो ! कट गया’ यह कहकर ।”
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हरि – परन्तु इसी खेल में तो हमारे प्राण जो निकलते हैं !
श्रीरामकृष्ण – (हँसकर) – तुम कौन हो कहो न ! ईश्वर ही सब कुछ बने हुए हैं – माया, जीव, जगत्, चौबीस तत्त्व ।
“साँप बनकर काटता हूँ, और ओझा बनकर झाड़-फूँक करता हूँ । वे विद्या, अविद्या दोनों ही बने हुए हैं । अविद्या-माया द्वार अज्ञानी जीव बने हुए है । विद्या-माया द्वारा तथा गुरु के रूप में ओझा बनाकर झाड़ –फूक कर रहे हैं ।
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“अज्ञान, ज्ञान, विज्ञान । ज्ञानी देखते हैं, वे ही कर्ता हैं । सृष्टि, स्थिति तथा संहार कर रहे हैं । विज्ञानी देखता है कि वे ही यह सब बने हुए हैं ।
“महाभाव, प्रेम होने पर देखता है, उनके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ।
“भाव के सामने भक्ति फीकी है । भाव पकने पर महाभाव, प्रेम !
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(बन्ध्योपाध्याय के प्रति) “क्या तुम अभी भी ध्यान के समय घण्टे का शब्द सुनते हो ?”
बन्ध्यो. – रोज उसी शब्द को सुनता हूँ । फिर रूप का दर्शन ! एक बार मन द्वारा अनुभव कर लेने पर क्या वह फिर रुकता है ?
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श्रीरामकृष्ण – (हँसकर) – हा; लकड़ी में एक बार आग लग जाने पर फिर बुझती नहीं । (भक्तों के प्रति) ये विश्वास की अनेक बातें जानते हैं ।
बन्ध्यो. – मेरा विश्वास बहुत अधिक है !
श्रीरामकृष्ण – अपने घर की औरतों को बलराम की लड़कियों के साथ लाना ।
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बन्ध्यो. – बलराम कौन हैं ?
श्रीरामकृष्ण – बलराम को नहीं जानते ? बोसपाड़ा में घर है ।
किसी सरलचित्त व्यक्ति को देखकर श्रीरामकृष्ण आनन्द में विभोर हो जाते हैं । बन्ध्योपाध्याय बहुत सरल हैं । निरन्जन भी सरल हैं । इसीलिए उसे भी बहुत चाहते हैं ।
श्रीरामकृष्ण – (मास्टर के प्रति) – तुम्हें निरन्जन से मिलने के लिए क्यों कह रहा हूँ ? यह देखने के लिए कि वह वास्तव में सरल है या नहीं ।
(क्रमशः)

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