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*बच्चों के माता पिता, दूजा नाहीं कोइ ।*
*दादू निपजै भाव सूं, सतगुरु के घट होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- माता पिता के कर्तव्य
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माता-पिता को चाहिये कि सांझ सबेरे सन्तति को प्रणाम करना सिखावें । माता कहे - "पिता जी को प्रणाम करो" और पिताजी कहें- "अपनी माताजी, बड़ी बहिन बड़े भाई आदि सभी बड़े - बूढों को प्रणाम करो" कारण प्रणाम करने से बड़े लोग सुभाशिष देते हैं, जिससे प्राणी की बड़ी उन्नति होती है ।
प्रणति सिखावे परस्पर, मां पितु सुतहि सप्रीति ।
विना प्रणति मिलती नहीं, शुभाशीष यह नीति ॥२२॥
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