बुधवार, 5 मई 2021

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*दादू साचा साहिब सेविये, साची सेवा होइ ।*
*साचा दर्शन पाइये, साचा सेवक सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---सत्य
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मनु के पुत्र नभग, नभग के पुत्र नाभाग बहुत समय तक गुरुकुल में रहे, इधर अन्य भाइयों ने यह जानकर कि नाभाग गृहस्थ न होंगे अपना अपना हिस्सा बांट लिया । नाभाग के लिये कुछ न रक्खा ।
नाभाग ने गुरुकुल से आकर अपना हिस्सा मांगा । बड़े भाइयों ने कहा - तुम्हारे हिस्सा में पिताजी है । नाभाग ने पिता से कहा, पिता ने कहा - उन्होंने तुम से छल किया है मैं कोई भोग वस्तु नही हूँ । फिर भी मैं तुमको तुम्हारी जीविका का उपाय बतलाता हूँ ।
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अडिगरस मुनिगण यज्ञ कर रहे है किंतु उस यज्ञ की पूर्णता जिन सूक्तों से होती है उन्हें वे नहीं जानते । इससे हर छठे दिन कर्तव्य कर्म में कर्तव्यमूढ हो जाते हैं । आज छठा दिन है । तुम वहां जाकर उनकों वैश्वदेव सम्बन्धी दो सूक्त बताओ । कर्म समाप्त होने पर वे स्वर्ग चले जायेंगे और यज्ञ की शेष धन राशि तुमको दे जायेंगे ।
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नाभाग ने वैसी ही किया एवं ऋषि भी यज्ञ की शेष राशि नाभाग को देकर स्वर्ग को चले गये । फिर यज्ञभूमी में रूद्र प्रगटे और नाभाग से बोले - यह सब यज्ञ से बचा धन मेरा है । नाभाग - मुझे तो ऋषियों ने दिया है । रूद्र - तुम्हारे पिता से पूछ कर आओ कि यह किसे मिलना चाहिये ? नाभाग ने जाकर पिता से पुछा । पिता ने कहा - जो कुछ भी यज्ञ की बची सामग्री है, वह सब रूद्र का भाग है । ऋषियों ने दक्ष के यज्ञ में ऐसा नियम कर दिया है ।
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नाभाग ने आकर ज्यों की त्यों सब बात सुना दी । रूद्र - तुम्हारे पिता ने धर्म नहीं छोड़ा और तुमने भी आकर सत्य सत्य ही कहा है, तुम वेद मंत्रों को जानते हो, मैं तुम पर प्रसन्न हूँ । तुम्हें ब्रह्म रूप सनातन का उपदेश करता हूँ । और यह बचा धन भी देता हूँ इसे ग्रहण करो यह कहकर रूद्र अन्तर्धान हो गये ।
सत् वच से धन ज्ञान यश, मिले नहीं सन्देह ।
नृप नाभागहिं को दिये, शंकर ने कर नेह ॥५३॥

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