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*दादू झूठा बदलिये, साच न बदल्या जाइ ।*
*साचा सिर पर राखिये, साध कहै समझाइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---सत्य
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एक सेठ अपने शिशु पुत्र को छोड़कर मर गया । शोक के कारण उसकी स्त्री का दूध सूख गया । धाय को रखना पड़ी । मुनीमों की चालाकी से धन नष्ट हो गया । ३-४ वर्ष के बाद दुष्टों के बहकाने से धाय बच्चे को लेकर जाने लगी । सेठानी - बच्चे को कहाँ ले जाती है ? धाय - बच्चा मेरा है ले कैसे नहीं जाऊँगी ? विवाद बढा राजा के पास केस गया । कुछ लोग सेठानी की ओर बोलते थे तो कुछ धाय की ओर ।
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निर्णय होना कठिन देखकर राजा ने वह केस अपने गुरु संत के पास रक्खा । संत ने कहा - अच्छा कल सांझ के समय दोनों माताओं बच्चा और मंत्री मंडल के सहित तुम आओ मैं निर्णय कर दूंगा, सब आ गये, दोनों माताओं की बात संत ने सुन ली । फिर बच्चे को एक तख्त पर लिटा कर राजा से नंगी तलवार हाथ में लेकर संत ने दोनों माताओं से कहा - तुम दोनों के युक्ति प्रणाम बराबर हैं, इसलिये बच्चे के दो टुकड़े कर देते हैं दोनों आधा आधा ले लो ।
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यह कहकर ज्योंहि तलवार बच्चे की ओर झुकाई कि सेठानी दौड़ी और बच्चे को अपने नीचे दबाकर बोली - चाहे धाय को ही दे दे किन्तु मेरे लाल को मारो तो नहीं । संत ने तलवार म्यान में रख दी और कह दिया कि बच्चा सेठानी का है और इसे ही मिलना चाहिये । सत्य के आगे असत्य नहीं टिका ।
यथार्थता आगे असत्, अंत न ठहरे कोय ।
धाय मात की परीक्षा, हुई खडग से जोय ॥६३॥
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