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*चंद सूर चौरासी लख तारा,*
*दिन अरु रैणी, रच ले सप्त समंदा ।*
*सवा लाख मेरु गिरि पर्वत, अठारह भार,*
*तीर्थ व्रत ता ऊपर मंडा ।*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पीव पहिचान का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*सप्त द्वीप के भक्त*
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*सप्त द्वीप सातों समुद्र, भक्त तिते शिर-मौर ॥*
*जम्बू खार समुद्र, प्लक्ष चहुं फेर ईख रस ।*
*शाल्मलि समुद्र मधू, सुनो कुश घृत देव बस ॥*
*क्रौंच पास सर दुग्ध,*
*शाक दधि को निर्मल सर ।*
*पुष्कर सागर सुधा, पार सोहै कांचन-धर ॥*
*पर्वत लोका-लोक में, बिंटवोक१ चहुं ओर ।*
*सप्त द्वीप सातों समुद्र,*
*भक्त तिते शिर-मौर ॥१३६॥*
सात द्वीप और सातों समुद्रों के पास जो भी भक्त हैं, वे सब हमारे शिरोमणि हैं ।
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जम्बूद्वीप के चारों ओर क्षार समुद्र है । प्लक्ष द्वीप इक्षु रस समुद्र से घिरा है । शाल्मलि द्वीप शहद के समुद्र से घिरा है । कुश द्वीप का समुद्र भी सुनो, कुश द्वीप घृत समुद्र से घिरा है । उसमें देवता निवास करते हैं ।
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क्रौंच द्वीप के चारों ओर दूध का समुद्र है । शाक द्वीप के चारों ओर निर्मल दही का समुद्र है । पुष्कर द्वीप को अमृत का समुद्र घेरे हुये है । उसके पार कांचनधर और लोकालोक पर्वत है ।
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कांचन-धर टापू१ के स्थानों और आश्रमों में जहां तहां चारों ओर भगवान् के भक्त निवास करते हैं । वे सभी मेरे पूज्य हैं ।
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जम्बूद्वीप से प्लक्ष द्वीप दुगना है । प्लक्ष से शाल्मलि दूना है । इसी प्रकार उत्तरोत्तर दूने हैं । प्रत्येक द्वीप में शतावधि योजन का एक वृक्ष है । उसके नाम से वह द्वीप है । जम्बू द्वीप में जामुन का वृक्ष है । भारतवर्ष जम्बूद्वीप में ही है । कांचनधर टापू तथा लोकालोक पर्वत इन सातों द्वीपों से बाहर है ।
(क्रमशः)
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