बुधवार, 5 मई 2021

*१५. माया कौ अंग ~ १६१/१६४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*१५. माया कौ अंग ~ १६१/१६४*
.
माई ले अरभष३ कहै, बापहि बूझै नांहि ।
कहि जगजीवन रांमजी, क्यूं हरिपरसै मांहि ॥१६१॥
{३. अरभष=अर्भक(बालक=शिशु)}
संत जगजीवन जी कहते हैं कि मां बालक के जन्म के बाद उसमें ही लीन हो जाती है ऐसे ही यह जीव भी संसार में आकर सच्चे पिता को भूल जाता है । तो फिर परमात्मा कैसे सहायता करेंगे ।
.
 खांड४ रांड खंडित किया, मीठा मांहि खार४ ।
कहि जगजीवन रांम तजि, छार५ किया तन सार६ ॥१६२॥
(४-४. खांड रांड खंडित किया=इस जीवन में नारी ने बीच में आकर हमारे जीवन का माधुर्य रस नष्ट कर दिया)   (५. छार=राख)
(६. तन सार=अच्छा भला स्वस्थ शरीर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि माया रुपी स्त्री ने जीव व ब्रह्म के बीच आकर माधुर्य को नष्ट कर दिया । संत कहते हैं कि जीव ने राम को छोड़कर माया से नेह कर इस जीवन को क्षारीय कर लिया है ।
.
कहि जगजीवन अंबु मंहि, अंबु समांना भांन ।
अंब थैं अंब अनेक तर, हरि मंहि जांनै जांन ॥१६३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिस प्रकार जल में जल समाहित होता तो प्रतीत  होता है  पर हम उस जल का अस्तित्व पृथक नहीं जान पाते । इसी प्रकार इससे कितने ही गुना बेहतर प्रभु जीव में स्थित है । ऐसा जाने ।
.
बाजीगर त्रिय गोटिका, छल७ बल८ कल९ दिठबंध१० ।
कहि जगजीवन रांम बिन, आंन सकल ऐ धंध ॥१६४॥
(७. छल=कपट, धोखा)   (८. बल=हठ, जोर जबर्दस्ती)   
{९. कल=तिकड़म(=चतुरतापूर्ण उपाय)}   
{१०. दिठबन्ध=दृष्टिबन्ध (=मतिभ्रम या बुद्धिभ्रम)} 
संतजगजीवन जी कहते हैं जैसे बाजीगर गोटी चला कर जादू करता है ये तीन गोटी छल, बल, व चातुर्य हैं, किंतु बिना राम नाम के सब व्यर्थ है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें