शुक्रवार, 21 मई 2021

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*जाके हिरदै जैसी होइगी, सो तैसी ले जाइ ।*
*दादू तू निर्दोष रह, नाम निरंतर गाइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु - मौन
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महाराजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाला था तब वे मौन थे । इस कारण राजा के अपकार करने पर भी भला बुरा कुछ भी न कह सके थे । इस कथा से सूचित होता है कि मौन से द्वन्दवों को(राग द्वेषादि की) जड़ नहीं जमती ।
मौन माँहि निर्द्वन्द्वता, विशेष देखी जाय ।
राग द्वेष से रहित रहे, शमीक भारत गाय ॥३६०॥

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