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*प्रेम प्रीति स्नेह सुख, दादू ज्योति अपार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ बिनती का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(३) कीर्तनानन्द में*
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श्रीरामकृष्ण जरा विश्राम कर रहे हैं । श्यामदास माथुर अपने आदमियों को लेकर कीर्तन गा रहे हैं -
'सुखमय सायर(सागर) मरुभूमि भइल,
जलद निहारइ चातकि मरि गइल ।'
श्रीराधा का यह विरह-वर्णन हो रहा है । सुनकर श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो रहा है । वे छोटी खाट पर बैठे हुए हैं । बाबूराम, निरंजन, राम, मनोमोहन, मास्टर, सुरेन्द्र, भवनाथ आदि भक्त जमीन पर बैठे हैं । गाना जम नहीं रहा है ।
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कोन्नगर के नवाई चैतन्य से श्रीरामकृष्ण कीर्तन करने के लिए कह रहे हैं । नवाई मनोमोहन के चाचा हैं । पेन्शन लेकर कोन्नगर में श्रीगंगाजी के तट पर भजन-साधन करते हैं । श्रीरामकृष्ण का प्रायः दर्शन करने आते हैं । नवाई उच्च कण्ठ से संकीर्तन कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण आसन छोड़कर नृत्य करने लगे । साथ ही नवाई और भक्तगण उन्हें घेरकर नृत्य करने लगे । कीर्तन खूब जम गया । महिमाचरण भी श्रीरामकृष्ण के साथ नृत्य कर रहे हैं ।
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कीर्तन हो जाने पर श्रीरामकृष्ण अपने आसन पर बैठे । हरिनाम के बाद अब आनन्दमयी का नाम ले रहे हैं । श्रीरामकृष्ण भावपूर्ण हैं । नाम लेते हुए ऊर्ध्वदृष्टि हो रहे हैं ।
गाना - "माँ, आनन्दमयी होकर मुझे निरानन्द न करना ।
गाना - “उसका चिन्तन करने पर भाव का उदय होता है । जैसा भाव होता है, फल भी वैसा ही मिलता है । इसकी जड़ विश्वास है । जो काली का भक्त है, उसे तो जीवन्मुक्त कहना चाहिए । वह सदा ही आनन्द में रहता है । अगर उनके चरणरूपी सुधा-सरोवर में चित्त लगा रहा तो समझना चाहिए, उसके लिए पूजा, जप, होम, बलि, ये सब कुछ भी नहीं है ।"
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श्रीरामकृष्ण ने तीन-चार गाने और गाये । अन्त में जो पद उन्होंने गाया, उसका भाव यह है - "मन ! आदरणीया श्यामा माँ को यत्नपूर्वक हृदय में रखना । तू देख और मैं देखूँ, कोई दूसरा उन्हें न देखने पाये ।”
यह गाना गाते हुए श्रीरामकृष्ण जैसे खड़े हो गये । माता के प्रेम में पागल हो गये । 'आदरणीया श्यामा माँ को हृदय में रखना’ यह इतना अंश बार बार भक्तों को गाकर सुना रहे हैं ।
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शराब पीकर मतवाले हुए की तरह सब को गाकर सुना रहे हैं । श्रीरामकृष्ण गाते हुए बहुत झूम रहे हैं । यह देख निरंजन उन्हें पकड़ने के लिए बढ़े । श्रीरामकृष्ण ने मधुर स्वरों में कहा – ‘मत छू ।’ श्रीरामकृष्ण को नाचते हुए देखकर भक्तगण उठकर खड़े हो गये । श्रीरामकृष्ण मास्टर का हाथ पकड़कर कहते हैं – ‘नाच ।’
श्रीरामकृष्ण अपने आसन पर बैठे हुए हैं । भाव की पूर्ण मात्रा है – बिलकुल मतवाले हैं ।
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भाव का कुछ उपशम होने पर कह रहे हैं - ॐ ॐ ॐ काली ! भक्तों में से कितने ही खड़े हैं । महिमाचरण खड़े हुए श्रीरामकृष्ण को पंखा झुल रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (महिमाचरण से) - आप लोग बैठिये ।
"आप वेद से जरा कुछ सुनाइये ।"
महिमाचरण सुना रहे हैं -
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जय यज्वमान आदि: फिर वे महानिर्वाण तन्त्र की स्तुति का पाठ करने लगे –
"ॐ नमस्ते सते ते जगत्कारणाय नमस्ते चिते सर्वलोकाश्रयाय ॥
नमोऽद्वैततत्वाय मुक्तिप्रदाय, नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय ॥
त्वमेकं शरण्यं त्वमेकं वरेण्यम् त्वमेकं जगत्पालकं स्वप्रकाशम् ॥
त्वमेकं जगत्कर्तुपातृप्रहर्तृ त्वमेकं परं निश्चलं निर्विकल्पम् ॥
भयानां भयं भीषणं भीषणानाम् गतिः प्राणिनां पावनं पावनानाम् ॥
महोच्चैः पदानां नियन्तृ त्वमेकम् परेषां परं रक्षणं रक्षणानाम् ॥
वयं त्वां स्मरामो वयं त्वां भजामो वयं त्वां जगत्साक्षिरूपं नमामः ॥
सदेकं निधानं निरालम्बमीशम् भवाम्भोधिपोतं शरण्यं व्रजामः ॥
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श्रीरामकृष्ण ने हाथ जोड़कर स्तुति सुनी । पाठ हो जाने पर हाथ जोड़कर उन्होंने प्रणाम किया । भक्तों ने भी प्रणाम किया । कलकत्ते से अधर आये । श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया ।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - आज खूब आनन्द रहा । महिम चक्रवर्ती भी इधर झुक रहा है । कीर्तन में खूब आनन्द रहा - क्यों ?
मास्टर - जी हाँ ।
महिमाचरण ज्ञानचर्चा करते हैं । आज उन्होंने कीर्तन किया है, और नाचे भी हैं । श्रीरामकृष्ण इस बात पर आनन्द प्रकट कर रहे हैं । शाम हो रही है । भक्तों में से बहुतेरे श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर बिदा हुए ।
(क्रमशः)
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