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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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पद ३०६ पाद एक पर -
*जागत जागै सोवत जागे, जब राम नाम मन माना ।*
दृष्टांत - नृपति दर्श गया संत के, सुते संत रु दास ।
नृपति जगाये दोउन को, राम राम कह त्रास ॥१॥
एक राजा एक संत के दर्शन करने रात में गया था । सत्संग करते - करते रात्रि अधिक चली गई । अतः उक्त संतजी के शिष्य संत और राजा के सेवक दोनों को ही निद्रा आ गई ।
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तब राजा ने कहा - मेरे दासों को ते निद्रा आ गई तो कोई बात नहीं किन्तु आपके शिष्य संत भी सब सो गये हैं । संत ने कहा - संतों का मन राम नाम में लगा हैं, अतः ये तो सोते हुये भी जागते ही हैं । राजा - यह क्या पता है कि संतों का मन राम नाम में ही लगा है ? संत ने कहा - तुम उच्चस्वर से कोई शब्द बोलो फिर पता लग जायेगा । उठते ही जिनके मन में जो होगा वही बोलेंगे ।
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राजा ने उच्च स्वर से सावधान शब्द बोला - तब संत और राजा के सेवक दोनों ही जग गये । संत तो राम - राम बोलते हुये उठे और राजा के सेवक पकड़ो, मारो कौन आगया है, इत्यादि त्रास जनक शब्द बोलते हुये उठे । तब राजा ने मान लिया । सोई उक्त ३०६ के पद के एक पाद में कहा है कि - जिनका मन राम राम में रहता है, वे संत तो जागते और सोते दोनों अवस्थाओं में ही मोह नींद से जागे हुये ही रहते हैं ।
इतिश्री राग सोरठ १९ समाप्तः
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