सोमवार, 27 सितंबर 2021

*विभिन्न भक्ति भाव*

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🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*दादू दरिया प्रेम का, तामें झूलैं दोइ ।*
*इक आतम परआत्मा, एकमेक रस होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*विभिन्न भक्ति भाव*
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श्रीरामकृष्ण - (भक्तों से) - कितने ही प्रकार से उनकी सेवा की जा सकती है ।
"प्रेमी भक्त उन्हें लेकर कितनी ही तरह से सम्भोग करता है ।
"कभी तो वह सोचता है, ईश्वर पद्म हैं और वह भौंरा, और कभी ईश्वर सच्चिदानन्द सागर हैं और वह मीन ।
"प्रेमी भक्त कभी सोचता है कि वह ईश्वर की नर्तकी है । यह सोचकर वह उनके सामने नृत्य करता है - गाने सुनाता है । कभी सखीभाव या दासीभाव में रहता है ।
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कभी उन पर उसका वात्सल्यभाव होता है - जैसा यशोदा का था । कभी पतिभाव - मधुरभाव होता है जैसा गोपियों का था । “बलराम का भी तो सखीभाव रहता था और कभी वे सोचते थे, मैं कृष्ण का छाता या लाठी बना हुआ हूँ । सब तरह से वे कृष्ण की सेवा करते थे । "चैतन्यदेव की तीन अवस्थाएँ थीं । जब अन्तर्दशा होती थी, तब वे समाधिलीन हो जाते थे । उस समय बाहर का ज्ञान बिलकुल न रह जाता था ।
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जब अर्धबाह्य दशा होती थी, तब नृत्य तो कर सकते थे, पर बोल नहीं सकते थे । बाह्यदशा में संकीर्तन करते थे ।
(भक्तों से) “तुम लोग ये सब बातें सुन रहे हो, धारणा करने की चेष्टा करो । विषयी जब साधु के पास आते हैं, तब विषय की चर्चा और विषय की चिन्ता को बिलकुल छिपा कर आते हैं । जब चले जाते हैं, तब उन्हें निकालते हैं । कबूतर मटर खाता है, तो जान पड़ता है, निगल कर हजम कर गया, परन्तु नहीं, गले के भीतर रखता जाता है । गले में मटर भरे रहते हैं ।
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"सब काम छोड़कर तुम्हे चाहिए कि सन्ध्या समय उनका नाम लो ।
"अंधेरे में ईश्वर की याद आती है । यह भाव आता है कि अभी तो सब दीख पड़ रहा था, किसने ऐसा किया । मुसलमानों को देखो, सब काम छोड़कर ठीक समय पर जरूर नमाज पढ़ेंगे ।"
मुखर्जी - अच्छा महाराज, जप करना अच्छा है ?
श्रीरामकृष्ण - हाँ, जप से ईश्वर मिलते हैं । एकान्त में उनका नाम जपते रहने से उनकी कृपा होती है, इसके पश्चात् है दर्शन ।
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"जैसे पानी में काठ डुबाया हुआ है - लोहे की जंजीर से बाँधा हुआ है, उसी जंजीर को पकड़कर जाओ तो वह लकड़ी अवश्य छू सकोगे ।
"पूजा की अपेक्षा जप बड़ा है, जप की अपेक्षा ध्यान बड़ा है, ध्यान से बढ़कर है भाव और भाव से बढ़कर महाभाव या प्रेम । प्रेम चैतन्यदेव को हुआ था । प्रेम यदि हुआ तो ईश्वर को बाँधने की मानो रस्सी मिल गयी । (हाजरा आकर बैठे ।)
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(हाजरा से) "उन पर जब प्यार होता है, तब उसे रागभक्ति कहते हैं । वैधी-भक्ति जितनी शीघ्र आती है जाती भी उतनी ही शीघ्र हैं; राग-भक्ति स्वयम्भू लिंग-सी है । उसकी जड़ नहीं मिलती । स्वयम्भू लिंग की जड़ काशी तक है । राग-भक्ति अवतार और उनके सांगोपांग अंशों को होती है ।"
हाजरा – अहा !
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श्रीरामकृष्ण - तुम जब एक दिन जप कर रहे थे, तब मैं जंगल से होकर आ रहा था । मैंने कहा - माँ, इसकी बुद्धि तो बड़ी हीन है, यह यहाँ आकर भी माला जप रहा है । जो कोई यहाँ आयेगा, उसे तत्काल ही चैतन्य होगा । उसे माला जपना, यह सब इतना न करना होगा । तुम कलकत्ता जाओ, देखोगे, वहाँ हजारों आदमी माला जपते हैं - वेश्याएँ तक ।
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श्रीरामकृष्ण मास्टर से कह रहे हैं –
"तुम नारायण को किराये की गाड़ी पर ले आना ।
"इनसे (मुखर्जी से) भी नारायण की बात कह रखता हूँ । उसके आने पर उसे कुछ खिलाऊँगा ! उसको खिलाने के बहुत से अर्थ हैं ।"
(क्रमशः)

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