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*जे पहुँचे ते कह गए, तिनकी एकै बात ।*
*सबै सयाने एक मत, उनकी एकै जात ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥ ६ प्रार्थना भक्ति ॥*
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*॥ प्रार्थना से जड़ में भी गति ॥*
जड़ में भी गति होत है, करत विनय सह प्रीति ।
रथ नारायणदास का, चलासु अद्भुत रीति ॥१५१॥
दृष्टांत कथा – सन्तवर दादूजी के शिष्य घडसीजी कड़ेलवालों के शिष्य सन्त नारायणदासजी को जोधपुर के राजा जशवन्तसिंहजी ने जोधपुर बुलवाया था । वे एक रथ में बैठ कर आ रहे थे । किसी के बहकावे से परीक्षा के लिये राजा ने रात्रि में उनके रथ के बैल चुरवा लिये थे । और जहां वे ठहरे थे उस ग्राम वालों से भी कह दिया था कि उन्हें कोई भी बैल नहीं दे ।
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जब प्रात:काल बैल नहीं मिले तो नारायणदासजी ने ध्यान धर करके देखा और सब बात जान ली । रथ पर बैठ कर के भगवान् से प्रार्थना की – 'हे निरंजन देव ! आप सर्व समर्थ हैं इस रथ को बिना बैलों के ही चला दीजिये ।'
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उनकी प्रार्थना स्वीकृत होगई रथ बिना बैलों के ही शीघ्र गति से चलने लगा । यह देख कर राजा चरणों में आ पड़े और क्षमा माँगी । इससे सूचित होता है कि प्रार्थना जड़ में भी गति होने लगती है ।
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