सोमवार, 27 सितंबर 2021

*संतन को सर्वस्व दियो जिन*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*सतगुरु संतों की यह रीत,*
*आत्म भाव सौं राखैं प्रीत ।*
*ना को बैरी ना को मीत,*
*दादू राम मिलन की चिंत ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*काट शरीर दियो भव्य सिंह को,*
*पैज१ रही कृष्णदास की भारी ।*
*पिंड ब्रह्माण्ड सु स्थावर जंगम,*
*है सब में विश्व रूप विहारी ॥*
*संतन को सर्वस्व दियो जिन,*
*ज्यों तन सौंपत नाह२ को नारी ।*
*राघो रह्यो गलतै गलताँन३ हो,*
*राम अखंड रट्यो इक-तारी४ ॥१७९॥*
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अपने शरीर को काट कर सिंह को भोजन देने से पयहारी कृष्णदास जी की अतिथि सत्कार की महान् प्रतिज्ञा१ रह गई थी अर्थात् पूर्ण हो गई थी । अपने सिंह को भी निराश नहीं लौटने दिया था ।
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उनका विचार था - ब्रह्माण्ड के स्थावर जंगम सभी शरीरों में विश्वरूप परमात्मा का विहार होता है अर्थात् सब में ही आत्म रूप से परमात्मा निवास करते हैं । इसी विचार से उन्होंने सिंह को अपना शरीर काट कर भोजन दिया था । उसी समय उनको भगवान् ने दर्शन भी दिया था ।
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जैसे पत्नी पति२ को अपना शरीर समर्पण करती है वैसे ही कृष्णदासजी पयहारी ने अपना सर्वस्व संतों की सेवा में दिया था ।
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गलते में निवास के समय अखंड राम के नाम का निरन्तर४ जप करते हुये भजनानन्द में निमग्न३ रहते थे ।
(क्रमशः)

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