🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*मति मोटी उस साधु की, द्वै पख रहित समान ।*
*दादू आपा मेट कर, सेवा करै सुजान ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मध्य का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*(७)श्रीरामकृष्ण का कांचन-त्याग*
.
श्रीरामकृष्ण - (मारवाड़ी से) - त्यागियों के नियम बड़े कठिन हैं । कामिनी और कांचन का संसर्ग लेशमात्र भी न रहना चाहिए । रुपया अपने हाथ से तो छूना ही न चाहिए; परन्तु दूसरे के पास रखने की भी कोई व्यवस्था न रहनी चाहिए ।
.
"लक्ष्मीनारायण मारवाड़ी था, वेदान्तवादी भी था, प्रायः यहाँ आया करता था । मेरा बिस्तरा मैला देखकर उसने कहा, मैं आपके नाम दस हजार रुपया लिख दूँगा, उसके व्याज से आपकी सेवा होती रहेगी ।
"उसने यह बात कही नहीं कि मैं जैसे लाठी की चोट खाकर बेहोश हो गया ।
"होश आने पर उससे कहा, तुम्हें अगर ऐसी बातें करनी हों, तो यहाँ फिर कभी न आना । मुझमें रुपया छूने की शक्ति ही नहीं है, और न मैं रुपया पास ही रख सकता हूँ ।
.
"उसकी बुद्धि बड़ी सूक्ष्म थी । उसने कहा, 'तो अब भी आपके लिए त्याज्य और ग्राहा है ! तो आपको अभी ज्ञान नहीं हुआ ।
"मैंने कहा, नहीं भाई, इतना ज्ञान मुझे नहीं हुआ । (सब हँसते हैं ।)
"लक्ष्मीनारायण ने तब वह धन हृदय के हाथ में देना चाहा । मैंने कहा - 'तो मुझे कहना होगा, इसे दे, उसे दे'; अगर उसने न दिया तो क्रोध का आना अनिवार्य होगा । रुपयों का पास रहना ही बुरा है । ये सब बातें न होंगी ।
.
"आईने के पास अगर कोई वस्तु रखी हुई हो, तो क्या उसका प्रतिबिम्ब न पड़ेगा ?"
मारवाड़ी भक्त - महाराज, क्या गंगा में शरीर-त्याग होने पर मुक्ति होती है ?
श्रीरामकृष्ण - ज्ञान होने ही से मुक्ति होती है । चाहे जहाँ रहो - चाहे महा कलुषित स्थान में प्राण निकलें, और चाहे गंगातट ही हो; ज्ञानी की मुक्ति अवश्य होगी ।
"परन्तु हाँ, अज्ञानी के लिए गंगातट ठीक है ।"
.
मारवाड़ी भक्त - महाराज, काशी में मुक्ति कैसे होती हैं ?
श्रीरामकृष्ण - काशी में मृत्यु होने पर शिव के दर्शन होते हैं । शिव प्रकट होकर कहते हैं - 'मेरा यह साकार रूप मायिक है, मैं भक्तों के लिए वह रूप धारण करता हूँ - यह देख, मैं अखण्ड सच्चिदानन्द में लीन होता हूँ ।' यह कहकर वह रूप अन्तर्धान हो जाता है ।
.
"पुराण के मत से चाण्डाल को भी अगर भक्ति हो, तो उसकी भी मुक्ति होगी । इस मत के अनुसार नाम लेने से ही काम होता है । योग, तन्त्र, मन्त्र, इनकी कोई आवश्यकता नहीं है ।
“वेद का मत अलग है । ब्राह्मण हुए बिना मुक्ति नहीं होती । और मन्त्रों का यथार्थ उच्चारण अगर नहीं होता तो पूजा का ग्रहण ही नहीं होता । याग, यज्ञ, मन्त्र, तन्त्र, इन सब का अनुष्ठान यथाविधि करना चाहिए ।
"कलिकाल में वेदोक्त कर्मों के करने का समय कहाँ है ? इसीलिए कलि में नारदीय भक्ति चाहिए ।
.
"कर्मयोग बड़ा कठिन है । निष्काम कर्म अगर न कर सके तो वह बन्धन का ही कारण होता है । इस पर आजकल प्राण अन्नगत हो रहे हैं । अतएव विधिवत् सब कर्मों के करने का समय नहीं रहा । दशमूल-पाचन अगर रोगी को खिलाया जाता है तो इधर उसके प्राण ही नहीं रहते, अतएव चाहिए फीवर-मिक्श्चर ।
"नारदीय भक्ति है - उनके नाम और गुणों का कीर्तन करना ।
"कालिकाल के लिए कर्मयोग ठीक नहीं, भक्तियोग ही ठीक है ।
.
“संसार में कर्मों का भोग जितने दिनों के लिए है, उतने दिन तक भोग करो, परन्तु भक्ति और अनुराग चाहिए । उनके नाम और गुणों का कीर्तन करने पर कर्मों का क्षय हो जाता है ।
"सदा ही कर्म नहीं करते रहना पड़ता । उन पर जितनी ही शुद्धा भक्ति और प्रीति होगी, कर्म उतने ही घटते जायेंगे । उन्हें प्राप्त करने पर कर्मों का त्याग हो जाता है । गृहस्थ की स्त्री को जब गर्भ होता है तो उसकी सास उसका काम घटा देती है । लड़का होने पर उसे काम नहीं करना पड़ता ।"
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें