🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*आतम देव आराधिये, विरोधिये नहिं कोइ ।*
*आराधे सुख पाइये, विरोधे दुःख होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
===========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*पयहारी कृष्णदासजी की पद्य टीका*
.
*जा शिर हाथ दियो न लियो कुछ,*
*राज दियो उन भूप कुलू को ।*
*डूंगर ब्यौर१ मिले सुत मात हि,*
*दे हरि पूजन संत सलूको२ ॥*
*थाल जलेबि पड़ी सु लिई सुत,*
*भोग बिना दुख पात हलूको३ ।*
*मारन को तलवार लिई जन,*
*ओट लिई धन देत मलूको४ ॥१७२॥*
.
पयहारी कृष्णदासजी ने जिसके शिर पर हाथ रक्खा अर्थात् शिष्य किया उससे कुछ भी नहीं लिया था किन्तु उलटी मुक्ति, भक्ति और मुक्ति दी थी । इसमें कुल्लू देश का राजा साक्षी है । उत्तर देश की यात्रा के समय आप कुल्लू चले गये थे । वहां एक गुहा में भजन करते थे । एक अहीर वहां ही भैंसें चराने आता था । उसकी एक भैंस पयहारी जी के कमंडलु के ऊपर थन करके कमंडलु दूध से भर देती थी । इस प्रकार चातुर्मास व्यतीत हो गया । एक दिन अहीर ने यह तमाशा देखकर पयहारीजी का दर्शन किया और उनके चरणों में शिर नमाया ।
.
पयहारी जी बोले - तेरी भैंस ने दूध देकर मुझे सुख दिया है । अतः तेरी इच्छा हो वही माँग ले । अहीर बोला - मेरे तो आपकी कृपा है किन्तु मेरा राजा धन हीन है, उस पर आप कृपा करो । तब अहीर के साथ उसको आप खोजते१ हुये पर्वत की कन्दरा में जाकर उस की माता और उसे दर्शन दिया और राज्य भी दिया था । शिष्य करके भाव भक्ति से सम्पन्न करते हुये भगवान् का पूजन और सन्तों की सेवा२ करने का उपदेश दिया था । फिर वह हरि पूजन और संत सेवा सदा करता रहा था ।
.
एक समय सन्तों का भंडारा था । जलेबियों का थाल भगवान् के मन्दिर में भोग लगाने को लेजा रहे थे । उसमें से एक दो जलेबी गिर पड़ी । भक्त राजा के छोटे पुत्र ने उठा ली और मुख३ में डाल ली । भगवान् के भोग लगे बिना ही मुख में डाल ली यह देखकर राजा को बड़ा दुःख हुआ । पुत्र को मारने के लिये राजा ने तलवार उठा ली ।
.
तब सन्तों ने उसे रोक लिया और पुत्र को राजा से माँग लिया । अपना बनाकर उसकी रक्षा को । फिर सन्तों ने कहा - यह बालक हमारा हो गया है । तुम इस सुन्दर४ बालक का मूल्य देकर इसे अपने पास रख सकते हो । राजा ने सन्तों की आज्ञा के अनुसार ही किया ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें